वरदान वन्दे मातरम्

गिरिजा कुलश्रेष्ठ

Webdunia
चेतना विश्वास का वरदान वन्दे मातरम्।
तिमिर से संघर्ष का ऐलान वन्दे मातरम्।

गूंज से जिसकी धरा जागी, गगन गुंजित हुआ
जागरण का गीत गौरव गान वन्दे मातरम्।

गीत यह सुनकर क्षितिज ने रश्मियों के द्वार खोले
नींद से जगकर, चहक कर, पंछियों ने पंख तोले।
गहन तम में ज्योति का संधान वन्दे मातरम्।

हृदय में जिनके भरा, परतंत्रता का जोश और आक्रोश पूरित था
उन सपूतों का यही था गान, वन्दे मातरम्।

मातृ वन्दन, मंत्र-पावन, गा इसे जो मिट गए
बिजलियों की चमक थी जो, मेघ काले छँट गए
जाति का या धर्म का उनके लिए क्या भेद था?
बस उन्हें तो देशव्यापी दासता का खेद था
एक था उनका धरम-ईमान, वन्दे मातरम्।

गर्व है इतिहास का यह गीत, है ना गोटियां
मत जलाकर आग, सेंकों राजनैतिक रोटियां
सांप्रदायिकता, अशिक्षा, जातिगत, दलगत जहर
भूख भ्रष्टाचार का सर्वत्र टूटा है कहर
तुम लड़ो इनसे कि जैसे दासता से वो लड़े
क्यों शहीदों, देशगीतों के भला पीछे पड़े?
अस्मिता है, आन है, यह एकता का गान है
भारती के भाल का अभिमान है, सम्मान है।
है हमारे देश की पहचान वन्दे मातरम्।
चेतना विश्वास का वरदान वन्दे मातरम्।
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