ऐसे हैं प्रो. अक्षय कुमार जैन : संस्मरण

साहित्यकारों की नजर में प्रो. जैन

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अक्षय बाबू जीवन के 90 वर्ष पूरे कर रहे हैं। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, भोपाल रियासत के विलीनकरण आंदोलन के नेता, अध्यापक, लेखक, पत्रकार, शायर और विपरीत परिस्थितियों में सामंजस्य कायम करने वाले इंसान रहे हैं। भाई रतन कुमार के अखबार 'नई राह' में लिखे लेख और सम्पादकीय ने विलीनीकरण आंदोलन के लिए ईंधन का काम किया।
- ड ॉ. कमला प्रसाद

मुझे स्मरण है कि जब मेरा इनसे विवाह हुआ तो मेरे रूप-रंग की आलोचना समाज में चर्चित रही। उस समय इनकी खूबसूरती चरम सीमा पर थी। इन्होंने मुझे आजीवन हौंसला और सम्मान दिया। ससुराल के लोग मेरी नौकरी के पक्ष में न थे, मगर एक महिला की आर्थिक आजादी का पक्ष लेते हुए इन्होंने ससुराल वालों को मनोवैज्ञानिक ढंग से समझाकर मेरी नौकरी का मार्ग प्रशस्त किया।
- कुसुम कुमारी जैन

अक्षय बाबू भोपाल की गंगा जमुनी तहजीब के नुमाइंदे हैं। आज जब धर्म और भाषा के नाम पर लोगों को बाँटने की कोशिश की जा रही है तो उनका वजूद एकता के पुल के रूप में हमारे लिए रोशनी का मिनारा बना हुए है।
- प्रो. अशफाक अहमद

बाबू जी हिन्दी साहित्य सम्मलेन के लम्बे समय से अध्यक्ष रहे हैं। वे मायाराम सुरजन के साथ रहे, डॉ. कमलाप्रसाद के साथ भी लगातार बने हुए हैं, पर कभी उनके मुँह से नहीं सुना कि वे फलाँ विचारधारा से ग्रस्त हैं, इसलिए उनके कार्यक्रम में नहीं जाऊँगा।
- प्रो. रमेश दवे

अक्षय बाबू जैसा अपने बारे में प्रचार-प्रसार से इस हद तक उदासीन व्यक्ति मैंने दूसरा नहीं देखा। कुछ लोग इसे काहिली, आलसीपन कहते हैं, लेकिन दरअसल अंततः वे अपने प्रचार-प्रसार की कोशिशों को बेमानी समझते हैं। यह जीवन के प्रति उनका नजरिया है, जो चीजों की नश्वरता को स्वीकार करता है। उनका यह अंदाज गालिबाना है।
- प्रो. धनंजय वर्मा

निराभिमानी और सादे जीवन का जीवंत उदाहरण हैं भाईजी। भोपाल में हिन्दी के पौधे को सींचने वालों में उनका भी नाम है। हिन्दी-उर्दू भाषा और साहित्य के गंगा जमुनी संस्कृति वाले इंसान रहे हैं भाई जी इसलिए उनके दोनों हाथ दोनों अदीबों को आज भी संभाले हुए हैं।
- मूलाराम जोशी

अक्षय बाबू आज जो कुछ हैं वे किसी की कृपा से नहीं, किंतु अपनी लगन, मेहनत व समर्पण के कारण। मेरा मन उन्हें बड़े रचनाकार के रूप में देखना चाहता था, किंतु वे ज्ञान के दान और विद्या के गुणगान में कुछ ऐसे रमे कि रचनाकार गुम हो गया। उनके यौवन की कविताएँ पढ़ें तो ज्ञात होगा कि उनके भीतर कितना बड़ा रचनाकार छिपा है।
- बटुक चतुर्वेदी

अक्षय बाबू में प्रतिकूल स्थितियों और परिस्थि‍तियों को भी अपने अनुकूल ढालने का दुलर्भ गुण है। वे कोई भी निर्णय खुद को सामने रख कर नहीं लेते अपितु समग्र समाज को, उनकी चुनौतियों को ध्यान में रख कर लते हैं। वे भोपाल के गिने-चुने प्रेरण ा- पुरूष हैं जिन्हें तीन-तीन पीढ़ियों के साहित्यकारों को स्नेहिल बुजुर्ग के रूप में डाँटने का नैसर्गिक अधिकार प्राप्त है।
- कैलाशचंद्र पं त

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