श्री चैतन्य महाप्रभु

प्रकट एकादशी का महत्व

Webdunia
- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी
ND

भारतीय उपासना पद्धति में व्रत उत्सवों का बहुत महत्व है। शैव, वैष्णव सहित सभी उपासक इनको बहुत पवित्रता से आचरण में उतारते हैं। जिन-जिन आचार्यों ने उपासना पद्धतियों में जो कुछ भी विशेष उपलब्धियां प्राप्त की वह जन मानस में स्वीकार होती चली गईं।

चैतन्य महाप्रभु ऐसे संत हुए हैं जिन्होंने भक्ति मार्ग का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। भगवान्‌ श्री चैतन्य देव का आविर्भाव पूर्वबंग के अपूर्व धाम नवद्वीप में हुआ था। चौबीस वर्ष की अवस्था में लोककल्याण की भावना से संन्यास धारण किया, जब भारत वर्ष में चारों ओर विदेशी शासकों के भय से जनता स्वधर्म का परित्याग कर रही थी। तब चैतन्य महाप्रभु ने यात्राओं में हरिनाम के माध्यम से हरिनाम संकीर्तन का प्रचार कर प्रेमस्वरूपा भक्ति में बहुत बड़ी क्रांति फैला दी।

संन्यास ग्रहण के पश्चात श्री चैतन्य ने दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किया। उस समय दक्षिण में मायावादियों के प्रचार-प्रसार के कारण वैष्णव धर्म प्रायः संकीर्तन का प्रचार न करते तो यह भारत वर्ष वैष्णव धर्म विहीन हो जाता।

ND
हरिनाम का स्थान-स्थान पर प्रचार कर चैतन्यदेव श्रीरंगम्‌ पहुंचे और वहां गोदानारायण की अद्भुत्‌ रूपमाधुरी देख भावावेश में नृत्य करने लगे। श्री चैतन्य का भाव-विभावित स्वरूप देख मंदिर के प्रधान अर्चक श्रीवेंकट भट्ट चमत्कृत हो उठे और भगवान की प्रसादी माला उनके गले में डाल दी तथा उन्हें बताया कि वर्षाकालीन यह चातुर्मास कष्ट युक्त, जल प्लावन एवं हिंसक जीव-जन्तुओं के बाहूल्य के कारण यात्रा में निषिद्ध है, अतः उनके चार मास तक अपने घर में ही निवास की प्रार्थना की।

श्रीवेंकट भट्ट के अनुरोध पर श्रीचैतन्य देव के चार मास उनके आवास पर व्यतीत हुए। उन्होंने पुत्र श्रीगोपाल भट्ट को दीक्षित कर वैष्णव धर्म की शिक्षा के साथ शास्त्रीय प्रमाणोंसहित एक स्मृति ग्रंथ की रचना का आदेश दिया।

कुछ समय पश्चात श्रीगोपाल भट्ट वृंदावन आए एवं वहां निवास कर उन्होंने पंचरात्र, पुराण और आगम निगमों के प्रमाणसहित 251 ग्रंथों का उदाहरण देते हुए हरिभक्ति विलास स्मृति की रचना की। इस ग्रंथ में उन्होंने एकादशी तत्व विषय पर विशेष विवेचना की।

इस प्रसंग में आचार्य गौर कृष्ण दर्शन तीर्थ कहते हैं चातुः साम्प्रदायिक वैष्णवों के लिए आवश्यक रूप में एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है। एकादशी व्रत करने से जीवन के संपूर्ण पाप विनष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को सहस्रों यज्ञों के समान माना गया है।

ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासी तथा विधवा स्त्रियां भी एकादशी व्रत के अधिकारी हैं। एकादशी व्रत त्याग कर जो अन्न सेवन करता है, उसकी निष्कृति नहीं होती। जो व्रती को भोजन के लिए कहता है, वह भी पाप का भागी होता है।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

सिंधु नदी के 10 रोचक तथ्य, पाकिस्तान के सिंध प्रांत को क्या कहते थे पहले?

वास्तु के अनुसार कैसे प्राप्त कर सकते हैं नौकरी

रामायण से लेकर महाभारत तक के भगवान परशुरामजी के 8 किस्से

बाबा नीम करोली के अनुसार धन कमाने के बाद भी निर्धन रहते हैं ये लोग

अक्षय तृतीया पर बन रहे हैं 3 शुभ योग, कर लें 5 उपाय, होगी धन की वर्षा

सभी देखें

धर्म संसार

Pradosh Vrat 2025: शुक्र प्रदोष व्रत आज, जानें मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा

Aaj Ka Rashifal: 25 अप्रैल का दैनिक राशिफल, आज आपके जीवन में क्या बदलाव आ सकते हैं?

युद्ध के बारे में क्या कहती है महाभारत, जानिए 10 खास सबक

पहलगाम का वह मंदिर जहां माता पार्वती ने श्री गणेश को बनाया था द्वारपाल, जानिए कौन सा है ये मंदिर

25 अप्रैल 2025 : आपका जन्मदिन