जरूरी है लोभ का त्याग!

- अवधूत संत बाबा मस्तरामजी

Webdunia
ND

ज्ञानी लोग निरंतर सत्व में ही स्थित रहते हैं। जो अपने को देखना चाहे कि हम ज्ञानी हैं कि नहीं तो देखे कि मेरा मन आत्मा में ही संतुष्टि है कि बाहर भटकता है तो मालूम पड़ जाएगा। जो ज्ञान का रास्ता चलने लगता है तो वह कभी न कभी ठिकाने पहुंच ही जाता है। जब किसी की बुद्धि ज्ञान की बात ग्रहण नहीं करती तो आप्त पुरुष उसे कर्मयोग, भक्ति योग आदि का, अधिकारी भेद से चित्त शुद्धि के लिए उपदेश करते हैं। इस तरह ज्ञान को लक्ष्य के रूप में संकेत करके अधिकार अनुसार कर्म का उपदेश युक्ति संगत ही है।

जो अपने में तस्त है और जो परमात्मा में मस्त है, दोनों एक ही हैं। दोनों में बालक की तरह सहज कामना उठती है-बहुत चिंतन नहीं करते। माता पीटे तो भी माता की गोद में छिपते हैं। यही हाल ज्ञानी भक्त लोगों का है। उनके लिए परमात्मा के सिवाय और कोई नहीं है। बड़ा बालक होता है, वह भोजन स्वयं कर लेता है। माता उसकी चिंता विशेष नहीं रखती। छोटा बच्चा है, उसके भोजन, वस्त्र की चिंता भगवान रूपी माता करती है।

जो सात्विक नहीं है, रजोगुणी, तमोगुणी है, उनसे ज्ञान दूर होता है। जब मनोगत कामना को छोड़ देता है तो प्रज्ञा स्थित हो पाती है पर छूटना कठिन है। इसके लिए कर्म योग का साधन बताया जो कर्मयोग में सिद्ध हो जाता है, उसे स्थितप्रज्ञ कहते हैं। किसी की बुद्धि तीव्र होती है, किसी की मंद। अन्वय व्यक्तिरेक का ज्ञान बुद्धि में ही आता है। यह वास्तविक ज्ञान नहीं है। अनुभव से वास्तविक ज्ञान होता है। सत्य का अनुभव हो जाता है तो असत्‌ छूट जाता है।

भगवान ने अर्जुन को याद दिलाया कि बालक की तरह निर्लोभी आदि होना चाहिए। पर उसकी सब कामनाएं सुषुप्त रहती हैं और बड़े हो जाने पर सब कामनाएं जागृत हो जाती हैं। ज्ञान होकर जो निर्विकार होते हैं, वे स्थितप्रज्ञ होते हैं और अज्ञान होकर जो निर्विकार होते हैं, वे बालक की तरह होते हैं। बोलते तो मैना, तोता भी हैं पर वाणी ही सब कुछ नहीं है। वाणी में शांति है तो वह शांति पुरुष है और तेज है तो तेजस्वी है। जब क्षोभ के अवसर आवे और शांत रहे, तब शांति रह जाती है।

ND
बालक और ज्ञानियों में उल्टा क्रम होता है। बालक जैसे-जैसे बढ़ते हैं तो विकार बढ़ता है और ज्ञानी ज्यों-ज्यों बढ़ते हैं तो विकार कम होते जाते हैं। नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे दोनों क्रम चलता है। हम भी जब बच्चे थे तो बड़े लोग कहते थे कि पहले पढ़ो तो रोटी मिलेगी। उस समय तो समझते थे कि पहले रोटी मिल जाए फिर पढ़ लेंगे। पर अब मालूम हुआ कि पहले पढ़ लेंगे तब रोटी मिलेगी।

इसलिए पहले 'क' माने करो फिर 'ख' माने खाओ। पहले कर्मयोग है फिर ज्ञानयोग।

रागद्वेष रहते हुए भी अपने को ज्ञानी समझता है, वह तो सकाम कर्म करने वाले से भी नीच है। शुद्ध अंतःकरण जैसा करता है, वही ठीक होता है। जो अपने रूकता है और अपने चलता है, वह साधक है। सिद्ध का स्वतः होता है और साधक उसके पीछे-पीछे चलते हैं क्योंकि साधक को भी ज्ञानी होना है।

Show comments

Ganga Dussehra 2024: चार शुभ योग में मनाया जा रहा गंगा दशहरा, 5 चीजें दान करने से होगा बेहद शुभ

Ganga dussehra 2024 : मां गंगा की 3 रोचक पौराणिक कथाएं

Guru atichari 2025: गुरु के 3 गुना अतिचारी होने से 3 राशियों के दिन पलट जाएंगे, सफलता का आसमान छुएंगे

Shani Gochar 2025: शनि के मीन में जाने से 4 राशियों की किस्मत सोने जैसी चमकेगी

Indian rivers: भारत में कितनी नदियां बहती हैं और कितनी संकट में हैं?

हनुमानजी को लंका के समुद्र तक पहुंचाने वाली तपस्विनी कौन थीं, जो श्रीराम के दर्शन कर चली गईं परमधाम

Nirjala Ekadashi : आज और कल दोनों दिन है निर्जला एकादशी, जानें पारण का समय

Eid al-Adha 2024 : ईद उल अजहा पर कब और कौन करें कुर्बानी

Gayatri Jayanti : गायत्री जयंती पर जानें माता के 6 खास मंदिरों की जानकारी

निर्जला एकादशी पर तुलसी माता को अर्पित करेंगे ये 5 चीजें तो धन की कभी कमी नहीं रहेगी