अग्नि का भय दूर करने हेतु

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हेतु- अग्नि का भय दूर होता है।

निर्धूम-वर्तिरपवर्जित-तैल-पूरः कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि ।
गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां दीपोऽपरस्तवमसि नाथ! जगत्प्रकाशः ॥ (16)

तीन लोक को दीप्ति से पूरित करने वाले आप कितने अजीब दीपक से हो! नहीं तो इस दीपक में तेल है... न ही बाती! न ही इसमें धुएँ की रेखा उठती है..! पहाड़ों को प्रकंपित करने वाली हवा भी आपकी जगत्प्रकाशी ज्योत को तनिक भी कंपित नहीं कर पाती यानी हिला नहीं सकती।

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो चउदसपुव्वीणं ।

मंत्र- ॐ नमो सुमंगला-सुसीमा-नामदेवी सर्वसमीहितार्थं वज्रश्रृंखलां कुरु कुरु स्वाहा ।
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