गोपाचल की श्रेष्ठता

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गोपाचल का नाम आते ही केशवदास की कवि प्रिया (सन्‌ 1600-1601) की निम्न पंक्तियाँ मस्तिष्क में गूँज उठती हैं-

आछे-आछे वसन, असन, वसु, वासु, पसु,
दान, सनमान, यान, बाहन, बखानिये ।

लोग, भोग, योग, भाग, बाग, राग, रूपयुत,
भूषननि भूषित, सुभाषा मुख जानिये ।

सातो पुरी, तीरथ, सरित सब गंगादिव,
केशोदास पूरण पुराण गुन गानिये ।

गोपाचल ऐसे गढ़ राजा रामसिंह जू से,
देशनि की मणि, महि मध्यप्रदेश मानिये ।

केशवदास ने मध्यप्रदेश को देशों का मणि कहा है। इसके निवासियों के मुख में सुभाषा का वास बताया है। मध्यप्रदेश के अंतर्गत बुंदेला रामसिंह का राज्य है और गोपाचल जैसा गढ़ है और पुण्य तीर्थराज गढ़ गोपाचल, तीर्थराज की मणिमाला का मणि है।
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