शक्ति एवं सौभाग्य बढ़ाने हेतु

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हेतु- शक्ति एवं सौभाग्य बढ़ता है।

चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांगनाभिर्नींत मनागपि मनो न विकार-मार्गम्‌ ।
कल्पान्त-काल-मरुता चलिताचलेन किं मंदराद्रि-शिखरं चलितं कदाचित्‌ ॥ (15)

इसमें ताज्जुबी क्या कि उन बेचारी अप्सराओं का जमघट भी आपके मनोजगत में विकार की रेखा न खींच पाया...! प्रलय का झंझावाती अनिल चाहे सब कुछ पटक दे... उखाड़ दे... पर मेरु पर्वत को हिलाने की क्षमता उस बेचारे में कहाँ से आएगी?

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो दसपुव्वीणं ।

मंत्र- ॐ नमो भगवती गुणवती सुसीमापृथ्वी-वज्रश्रृंखलामानसी-महामानस्यै स्वाहा ।
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