स्तवन

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भगवान मेरी नैया, भव पार लगा देना ।
अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा लेना ॥1॥
दल बल के साथ माया, घेरे जो मुझे आकर।
तुम देखते न रहना, झट आके बचा लेना ॥2॥
संभव है खुशियों में, मैं तुझको भूल जाऊँ ।
पर नाथ कहीं तुम भी, मुझको न भूला देना ॥3॥
तुम देव मैं पुजारी, तुम इष्ट मैं उपासक ।
यह बात सत्य है तो, सच करके दिखा देना ॥4॥
तुम धर्म की शमा हो, हम भक्ति के परवाने ।
सौभाग्य की ये विनती, चरणों में शरण देना ॥5॥

*** *
उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं ।
विसहर-विस-निन्नासं, मंगल-कल्लाण आवासं ॥1॥

विसहर फुलिंग मंतं, कंठे, धारेइ जो सया मणुओ ।
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ॥2॥

चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ।
नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख दोगच्चं ॥3॥

तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि कप्पाय-वब्भहिए ।
पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ॥4॥

इअ संथुओ महायस! भक्तिब्भर निब्भरेण हियएण ।
ता देव दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास जिणजन्द ॥5॥
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