॥ स्वस्ति मंगल पाठ ॥

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श्री वृषभो नः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीअजितः।
श्री संभवः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीअभिनंदनः।
श्री सुमतिः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीपद्मप्रभः।
श्री सुपार्श्वः स्वस्ति, स्वरित श्रीचंद्रप्रभः।
श्री पुष्पदंतः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीशीतलः।
श्रीश्रेयान्‌ स्वस्ति, स्वस्ति श्री वासुपूज्यः।
श्री विमलः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीअनंतः।
श्री धर्मः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीशान्तिः।
श्री कुंथुः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीअरनाथः।
श्री मल्लिः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीमुनिसुव्रतः।
श्रीनमिः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीनेमिनाथः।
श्री पार्श्वः स्वस्ति, स्वस्ति श्री वर्द्धमानः।
( पुष्पांजलिं क्षिपामि)

॥ इति जिनेन्द्र स्वस्तिमंगलविधानं ॥
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