तुम्हारा किस्सा तुम्हारी कविता

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डॉ. श्रीप्रसाद, वाराणसी

भूल गया हू ँ
बकरी गाय बैल सब भागे
शेर भागकर आया था

एक बैल ने देखा उसको
जोरों से चिल्लाया था
कहा शेर ने शोर करो मत
मुझको खुद ही लगता डर

अभी जा रहा हूँ जंगल में
भूल गया हूँ अपना घर।

काँ काँ काँ...
धूम मचाई थी चिड़ियों ने
मिलकर गाने गाए थे
कौवेजी काँ काँ करने को
उसी भीड़ में आये थे

पर चिड़ियों ने ऐसा डाँटा
ऐसा डाँटा मिल-जुलकर
कौवेजी काँ काँ को भूले
लगे काँपने थर-थर-थर
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