हाथी

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- घनश्याम मैथिल 'अमृत'

सदा झूमता आता हाथी,
सदा झूमता जाता हाथी।
पर्वत जैसी काया इसकी,
भारी भोजन खाता हाथी।
सूंड से भोजन सूंड से पानी,
भर-भर सूंड नहाता हाथी।
छोटी आँखें कान सूप से,
दाँत बड़े दिखलाता हाथी।
राजा रानी शान समझते,
बैठा पीठ घुमाता हाथी।
अपनी पर जो आ जाए तो,
सबको नाच नचाता हाथी।

मछली
- सुगनचंद्र 'नलिन'
तैर-तैर मछली इठलाती,
जल की रानी है कहलाती।
पंख सुनहरे नित चमकाती,
बिना काँटा पकड़ी नहीं जाती।
पानी में ही जीवित रहती,
पर भूखों का दुख न सहती।
परहित जीवन सदा लुटाती,
बलिदानी जग में कहलाती।

चंदा मामा
- श्याम बिहारी सक्सेना
चंदा मामा नील गगन में,
जब देखो हँसते रहते हैं।
चमचम चमचम वह तम हरते,
हरदम चलते ही रहते हैं।
कभी नहीं वह रुकते पलभर,
जब मिलते हैं हमसे हँसकर।
हँसो-हँसाओ सदा रहो खुश,
यह संदेश दिया करते हैं।
चंदा मामा नील गगन में,
जब देखो हँसते रहते हैं।

साभार : स्नेह
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