कोटला के किंग हैं कुंबले

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नई दिल्ली । इंग्लैंड के खिलाफ 1990 में पदार्पण के बाद भारतीय टीम का अभिन्न अंग रहे अनिल कुंबले ने उस फिरोजशाह कोटला पर अपनी क्रिकेट पारी का अंत किया, जो कई मायनों में उनके दिल के काफी करीब रहा।

खराब फॉर्म और चोट के कारण संन्यास लेने का फैसला करने वाले कुंबले दिल्ली के इसी मैदान पर फरवरी 1999 में पाकिस्तान की दूसरी पारी में सभी 10 विकेट चटकाकर यह उपलब्धि हासिल करने वाले दुनिया के सिर्फ दूसरे गेंदबाज बने थे। उनसे पहले यह कारनामा करने वाले एकमात्र गेंदबाज इंग्लैंड के स्पिनर जिम लेकर थे, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पारी में दस और मैच में 19 विकेट चटकाए थे।

कुंबले ने पाकिस्तान के खिलाफ इस मैच में 149 रन देकर 14 विकेट, 75 रन पर चार विकेट और 74 रन पर 10 विकेट चटकाए थे, जिसकी बदौलत भारत ने 212 रन से जीत दर्ज की थी।

भारतीय कप्तान इस मैदान पर सबसे सफल गेंदबाज साबित हुए हैं और उन्होंने सात मैचों में 58 विकेट चटकाए हैं। उन्होंने यहाँ पाँच बार पारी में पाँच और दो बार पारी में दस विकेट चटकाए हैं। कुंबले ने 132 टेस्ट के अपने करियर में 29.63 की औसत से कुल 619 विकेट लिए।

कुंबले ने 1992 में फिरोजशाह कोटला में ही ईरानी ट्रॉफी मैच में शानदार प्रदर्शन कर भारतीय टीम में अपनी जगह पक्की की और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। भारतीय कप्तान ने भी स्वीकार किया कि कोटला मैदान उनके लिए काफी भाग्यशाली है और उन्होंने हमेशा यहाँ खेलने का लुत्फ उठाया।

कुंबले ने संन्यास लेने के बाद कहा कि मैंने प्रत्येक क्षण का भरपूर लुत्फ उठाया। यदि सबसे यादगार क्षण की बात करना ही है तो 1990 की मेरी पहली श्रृंखला और कोटला पर एक पारी में दस विकेट लेना मेरे करियर का बहुत अहम लम्हा था।

उन्होंने कहा कि दिल्ली मेरे लिए बहुत अहम स्थान रखता है। यहाँ से मेरी कई अच्छी यादें जुड़ी हुई हैं। वर्ष 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ पारी में दस विकेट लेने के बाद से कुंबले जब भी इस मैदान पर गेंदबाजी करने उतरे, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर ने उनकी टोपी अंपायर को दी। तेंडुलकर को लगता था कि उनका ऐसा करना इस गेंदबाज के लिए भाग्यशाली रहेगा।

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीसरे और कुंबले के करियर के अंतिम टेस्ट की दूसरी पारी में भी तेंडुलकर ने अंपायर अलीम डार को उनकी टोपी दी, लेकिन यह भारतीय स्पिनर चार ओवर में कोई विकेट हासिल नहीं कर सका। मैच के बाद उन्होंने कहा सचिन ने कहा कि ऐसा करने से मुझे अपनी अंतिम पारी में भी विकेट मिल जाएगा, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ।

कुंबले को कोटला में कभी हार का मुँह नहीं देखना पड़ा। उन्होंने मार्च 1993 में मोहम्मद अजहरुद्दीन की अगुवाई वाली टीम की ओर से जिम्बाब्वे के खिलाफ मैच में आठ विकेट लिए।

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अक्टूबर 1996 में कुंबले ने गेंदबाजी में कमाल दिखाते हुए नौ विकेट चटकाए, जबकि तीन साल बाद फरवरी 1999 में उन्होंने परफेक्ट टेन का इतिहास इसी मैदान पर रचा।

कुंबले ने इसके बाद फरवरी 2002 में जिम्बाब्वे के खिलाफ मैच में सात और 2005 में श्रीलंका के खिलाफ दस विकेट चटकाए। पिछले साल पाकिस्तान के खिलाफ भी कुंबले ने फिर से गेंदबाजी में कमाल दिखाया और सात विकेट लिए, जिससे भारत छह विकेट से जीत दर्ज करने में सफल रहा। (भाषा)

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