बर्ट्रेंड रसेल

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अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ब्रिटिश दार्शनिक, गणितज्ञ, वैज्ञानिक, शिक्षाशास्त्री, राजनीतिज्ञ तथा लेखक बर्ट्रेंड रसेल का जन्म 18 मई, 1872 को हुआ था। उनका परिवार ब्रिटेन के उन ऐतिहासिक परिवारों में रहा, जिन्होंने ब्रिट्रेन की राजनीति में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उस युग में स्त्री मताधिकार तथा जनसंख्या नियंत्रण जैसे वर्जित मुद्दों की वकालत के लिए यह परिवार विवादास्पद भी रहा।

अर्ल रसेल ने ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से गणित और नैतिक विज्ञान की शिक्षा पाई। छत्तीस वर्ष की छोटी उम्र में ही उन्हें रॉयल सोसायटी का फेलो बना दिया गया। वे फेबियन सोसायटी, मुक्त व्यापार आंदोलन, स्त्री, मताधिकार, विश्व शांति तथा परमाणु अस्त्रों के निषेध के पूर्ण समर्थक थे। उन्होंने कई विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें प्रमुख हैं- हिस्ट्री ऑव वेस्टर्न फिलासॉफी, द प्रिंसिपल्स ऑव मेथेमेटिक्स, मैरिज एंड मॉरल्स, द प्राब्लम ऑव चायना, अनऑर्म्ड विक्ट्री तथा प्रिंसिपल्स ऑव सोशल रिकंस्ट्रक्शन आदि।

रसेल को कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें ऑर्डर ऑव मेरिट (1949), साहित्य नोबल पुरस्कार (1950), कलिंग पुरस्कार (1957) तथा डेनिश सोनिंग पुरस्कार (1960) प्रमुख हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति अपनी सहानुभूति के कारण उन्हें ब्रिटेन में बनी इंडिया लीग का अध्यक्ष भी बनाया गया। प्रेम पाने की उत्कंठा, ज्ञान की खोज तथा मानव की पीड़ाओं के प्रति असीम सहानुभूति इन तीन भावावेगों ने उनके 97 वर्ष लंबे जीवन को संचालित किया। प्रस्तुत अंश उनकी आत्मकथा 'द ऑटोबायोग्राफी ऑव बर्ट्रेंड रसेल' से उद्धृत है। इस अंश में उनके बचपन का रोचक वर्णन है, जिसने उनके भविष्य की दिशा निर्धारित की।

पेमब्रोक लॉज के गुनगुनी धूप भरे दिन

मेरी सर्वप्रथम स्मृति है, फरवरी, 1876 में पेमब्रोक लॉज में अपने आगमन की। इस घर में अपने आगमन का मैं सही-सही वर्णन तो नहीं कर सकता, मगर मुझे याद है कि रास्ते में मैंने लंदन टर्मिनस या संभवतः पैडिंगटन की बड़ी सी कांच की छत देखी थी। मैंने सोचा था कि यह छत कल्पनातीत रूप से खूबसूरत है। पेमब्रोक लॉज में अपने पहले दिन की याद मुझे बस इतनी ही है कि मैंने सर्वेन्ट्स हॉल में चाय पी थी। यह एक बड़ा सा खाली कमरा था, जिसमें कुर्सियों व ऊंची स्टूलों के साथ एक भारी मेज रखी हुई थी। इस कमरे में घर के सभी नौकर अपनी चाय पीते थे, सिवाय हाउसकीपर, रसोइए, महिलाओं की परिचारिका और बटलर के। ये लोग अन्य नौकरों में 'ऊंचे' थे, अतः हाउसकीपर के कमरे में शाही ढंग से चाय पीते थे।

मुझे एक ऊंचे स्टूल पर बैठा दिया गया तब मुझे सबसे आश्चर्यजनक बात यह लगी थी कि आखिर नौकर मुझमें इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं। उस समय मुझे पता नहीं था कि मैं लॉर्ड चांसलर, महारानी के विभिन्न प्रमुख सलाहकारों और कई ख्यात व्यक्तियों के बीच गंभीर विचार-विमर्श का विषय बन चुका हूं और बड़े होने तक मुझे यह भी नहीं मालूम हुआ कि पेमब्रोक लॉज में मेरे आगमन से पूर्व कौन सी विभिन्न घटनाएं हुईं।

मेरे पिता, लॉर्ड एंबरले हाल ही में दीर्घकालिक दुर्बलता की वजह से स्वर्ग सिधार गए थे। उनकी मृत्यु के एक-डेढ़ साल पहले मेरी मां और बहन भी डिप्थीरिया से मर गई थीं। बाद में अपनी मां की डायरी और पन्नों से मैंने जाना कि वे एक जीवंत, कर्मठ, गंभीर, हाजिर जवाब, वास्तविक और निडर महिला थीं। उनके चित्रों से यह भी लगता था कि वे खूबसूरत थीं। मेरे पिता दार्शनिक, पढ़ाकू, गैर दुनियावी, रूखे और आत्मसंतुष्ट व्यक्ति थे। वे दोनों सुधारवादी सिद्धांतों के पक्के समर्थक थे और अपने विश्वास को वास्तविकता में बदलने को तत्पर रहते थे।

मेरे पिता जॉन स्टुअर्ट मिल के शिष्य और मित्र थे। उन्हीं से मेरे माता-पिता ने जनसंख्या नियंत्रण और स्त्री मताधिकार में विश्वास करना सीखा। जनसंख्या नियंत्रण की वकालत के कारण मेरे पिता को संसद में अपनी सीट गंवानी पड़ी। मेरी मां भी अपने सुधारवादी विचारों के कारण कभी-कभी मुसीबत में पड़ जाती थीं। एक बार महारानी मैरी के माता-पिता द्वारा दी गई गार्डन पार्टी में डचेज ऍव कैम्ब्रिज ने मां से तेज आवाज में कहा था- 'हां, मैं जानती हूं तुम कौन हो, तुम एक बहू हो। मगर अब मैं सुनती हूं कि तुम सिर्फ गंदे सुधारवादियों और गंदे अमेरिकियों को पसंद करती हो। सारा लंदन इससे भरा हुआ है, सारे क्लबों में इसी की चर्चा है। मुझे तुम्हारे पेटीकोट भी देखने ही पड़ेंगे कि कहीं वे गंदे तो नहीं हैं।'

फ्लोरेंस (इटली) स्थित ब्रिटिश उच्चायोग का यह पत्र तो मां की स्थिति अपने आप स्पष्ट कर देता है-

' प्रिय लेडी एम्बरले,
22 सितंबर, 1870
मैं एम. मॅजिनी का प्रशंसक नहीं हूं, मगर उसके चरित्र और सिद्धांतों से बेहद घृणा करता हूं। जिस सार्वजनिक पद पर मैं हूं,
वहां से मैं उसके विचारों के प्रचार का माध्यम भी नहीं बन सकता। आपका निवेदन ठुकराने की मेरी इच्छा तो नहीं है, मगर फिर भी मेरे पास एक ही रास्ता था कि मॅजिनी को भेजा गया आपका पत्र प्रॉक्यूरेटोर डेल रे, गेटा (राज्यपाल) के पास भिजवा दूं।
मैं आपका विश्वसनीय रहूंगा।
- ए. पेजेट'

मॅजिनी ने मेरी मां को अपना वॉच केस दिया था, जो अब मेरे पास है। मेरी मां स्त्री मताधिकार के पक्ष में बैठकों को संबोधित किया करती थीं। उनकी डायरी में मैंने एक उद्धरण प़ढ़ा है, जिसमें उन्होंने सामाजिक तितलियों को मक्खी मारने वाले बहनसंघ की संज्ञा दी थी। इसमें श्रीमती सिडनी वेब और लेडी कर्टनी का नाम भी शामिल था। बाद के वर्षों में मैंने श्रीमती सिडनी वेब को अच्छी तरह से जाना-समझा और मेरी मां की गंभीरता के प्रति मेरे मन में काफी सम्मान पैदा हुआ, जब मुझे याद आया कि वे श्रीमती वेब को छिछोरी समझती थीं, लेकिन सकारात्मकवादी हेनरी क्रॉम्पटन को लिखे गए मां के पत्र से मैंने जाना कि वे कभी-कभी चोंचलेबाज और जिन्दादिल भी हो जाती थीं। शायद इस तरह वे डायरी वाले अपने गंभीर व्यक्तित्व को दुनिया के समक्ष कम भयप्रद रूप में प्रस्तुत करना चाहती थीं।

मेरे पिता एक मुक्त विचारक थे। उन्होंने एक बड़ी सी किताब लिखी थी- 'एनालिसिस ऑव रिलीजियस बिलीफ' जो उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुई। उनका पुस्तकालय विशाल था, जिसमें बौद्धधर्म, कन्फ्यूशियसवाद आदि पर पुस्तकें रखी हुई थीं।पुस्तक लिखने के लिए वे अपना अधिकांश समय गांव में गुजारते थे। हालांकि शादी के पहले कुछ वर्षों में मेरे माता-पिता प्रतिवर्ष कुछ माह लंदन स्थित अपने डीन्सयार्ड के निवास में रहते थे। मेरी मां और उनकी बहन श्रीमती जॉर्ज हॉवर्ड (बाद में लेडी कार्लिस्ले) के बैठक गृह आपस में प्रतिद्वंद्वी थे। श्रीमती जॉर्ज की बैठक में रॅफेल युग से पहले के चित्र लगे हुए थे और मेरी मां की बैठक में मिल सहित सभी ब्रिटिश दार्शनिक रहते थे।

सन्‌ 1876 में मेरे माता-पिता अमेरिका गए। वहां उन्होंने बॉस्टन के सभी सुधारवादियों से मित्रता की। वे यह अनुमान नहीं लगा पाए थे कि जिन स्त्री-पुरुषों के लोकतांत्रिक उत्साह पर वे उन्हें वाहवाही दे रहे हैं और गुलामी के विरुद्ध जिनके विजयी अभियान की उन्होंने तारीफ की, वे सॅको और वॉन्जेटी के हत्यारों के पूर्वज हैं। मेरे माता-पिता का विवाह 1864 में हुआ था, तब दोनों को ही उम्र 22 वर्ष थी। मेरा भाई, जैसा कि वह अपनी आत्मकथा में शेखी मारता है, उनकी शादी के ठीक नौ माह चार दिन बाद पैदा हुआ था।

मेरे जन्म के कुछ समय पूर्व ही मेरे माता-पिता रॅवनस्क्रॉफ्ट (अब ग्लेडन हॉल) नामक बेहद एकांत मकान में रहने चले गए थे। यह मकान वॉय नदी के ढलवां तट के ठीक ऊपर स्थित जंगल में बना हुआ था। इसी मकान में मेरे जन्म के ठीक तीन दिन बाद मां ने मेरी नानी को मेरा वर्णन लिख भेजा था- 'बच्चे का वजन पौने नौ पौंड है, लंबाई 21 इंच है। वह बेहद मोटा और बदसूरत है। उसकी नीली आंखें बहुत दूर-दूर हैं और ठुड्डी तो मानो है ही नहीं। वह बहुत कुछ फ्रेंक की तरह दिखता है। मेरे पास ढेर सारा दूध है, लेकिन उसे तत्काल यह न मिले तो वह इतना क्रोधित हो जाता है कि चीखता है और लात मारता है। वह तब तक कांपता रहता है जब तक कि उसे शांत न कराया जाए... वह अपना सिर उठाकर बेहद ऊर्जावान तरीके से देखता है।'

विलियम जेम्स की 'सायकोलॉजी' में मेरे भाई के काम का जिक्र है। इसी से मुझे मालूम हुआ कि उसे पढ़ाने के लिए एक विज्ञान का ट्यूटर रखा गया था। मेरा भाई डॉर्विनवादी था और चूजों की मूल प्रवृत्ति का अध्ययन कर रहा था। उसके अध्ययन को आसान बनाने के लिए बैठक सहित घर के हर कमरे में चूजे उत्पात मचाते रहते थे। वह यक्ष्मा (टीबी) की गंभीर अवस्था में था और पिता की मृत्यु के कुछ वर्षों बाद ही चल बसा। मां की मौत के बाद भी पिताजी ने ट्यूटर की सेवाएं निरस्त नहीं कीं।

जब पिताजी की मृत्यु हुई तो यह पता लगा कि उन्होंने हम दोनों भाइयों के ट्यूटर और कॉबडेन सेंडरसन को हमारा अभिभावक नियुक्त किया है। ट्यूटर और कॉबडेन नास्तिक थे और पिताजी हमें धार्मिक लालन-पालन के दुष्प्रभावों से बचाना चाहते थे। बाद में पिता के कागजातों के जरिये यह तथ्य जानकर मेरे दादा-दादी एक दकियानूसी भय से भर गए। उन्हें बड़ा आघात लगा और उन्होंने निर्णय लिया कि जरूरी हुआ तो मासूम बच्चों को षड्यंत्रकारी नास्तिकों से बचाने के लिए वे अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। षड्यंत्रकारी नास्तिकों ने सर हॉरेश डेवी (बाद में लॉर्ड डेवी) से सलाह ली।

सर डेवी ने शैली के पूर्वोदाहरण के आधार पर उन्हें आश्वासन दिया कि उनके विरुद्ध कोई मुकदमा नहीं चलेगा। अतः मुझे और मेरे भाई को चान्सरी में संरक्षण में रखा गया। कॉबडेन सैंडरसन ने मुझे मेरे दादा-दादी को सौंप दिया। उनके घर पेसब्रोक लॉज में आने का जिक्र तो मैं पहले ही कर चुका हूं। कोई शक नहीं कि मेरे इसी इतिहास की वजह से नौकर मुझमें इतनी दिलचस्पी ले रहे थे।

मेरी मां की तो मुझे कोई स्मृति नहीं है। हां, इतना याद है कि एक बार जब मैं टट्टू गाड़ी से गिर पड़ा था, तब वे मेरे पास थीं। मुझे मालूम है कि मेरी यह स्मृति सच्ची है, क्योंकि कई वर्षों तक अपने मन में ही रखने के बाद मैंने इसकी पुष्टि कर ली थी। पिता के बारे में मुझे दो बातें याद हैं- उन्होंने मुझे एक लाल कागज दिया था, जिसके रंग ने मुझे प्रसन्न कर दिया था और मुझे याद है कि एक बार मैंने उन्हें बाथटब में नहाते देखा था। मेरे माता-पिता अपनी इच्छानुसार, रॅवनस्क्रॉफ्ट के बाग में दफनाए गए थे, किंतु बाद में उनकी कब्रों को चेनीज स्थित पारिवारिक कब्रगाह में स्थानांतरित कर दिया गया।

रिचमंड पार्क स्थित मेरे दादा-दादी का निवास 'पेमब्रोक लॉज' सिर्फ दो मंजिलों वाला चौड़ा मकान है। यह राजकीय भेंट के रूप में उन्हें प्राप्त हुआ था। इसका नाम लेडी पेमब्रोक के नम पर पड़ा है, जिनके प्रति जॉर्ज तृतीय अपनी मानसिक रुग्णावस्था के दिनों में समर्पित थे। महारानी ने चालीस के दशक में इसे मेरे दादा-दादी को जीवन भर के लिए दिया था और वे तभी से इसमें रह रहे हैं। किंग्लेक की रचना 'इनवेजन ऑव द क्रीमिया' में वर्णित प्रसिद्ध मंत्रिमंडल बैठक, जिसमें क्रीमियन युद्ध का निर्णय लेते हुए कई कैबिनेट मंत्री सो गए थे, पेमब्रोक हॉल में हुई थी। बाद में किंग्लेक रिचमंड में रहने लगे थे और मैं उन्हें अच्छी तरह जानता था। एक बार मैंने सर स्पेंसर वालपोल से पूछा था कि किंग्लेक नेपोलियन तृतीय के प्रति इतनी कटु भावना क्यों रखते हैं। सर स्पेंसर ने जवाब दिया कि उनमें एक औरत को लेकर झगड़ा हो गया था। जाहिर है, मैंने पूछा- 'क्या आप मुझे यह कहानी सुनाएंगे।' उन्होंने कहा, 'नहीं श्रीमान, मैं तुम्हें यह कहानी नहीं सुनाऊंगा।' और थोड़े ही दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई।

पेमब्रोक लॉज में 11 एकड़ का बगीचा था, जिसकी अधिकतर देखभाल नहीं की जाती थी। अठारह साल की उम्र तक इस बगीचे ने मेरे जीवन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बगीचे के पश्चिमी हिस्से में एक विशाल परिदृश्य नजर आता था, जो एप्सॉम डाउन (जिसे मैं अप्स एंड डाउन समझता था) से होकर विंडसर कॉसल तक फैला था। इनके बीच में हिंडहेड तथा लीथ हिल स्थित थे। मैं लंबे-चौड़े क्षितिज और बेरोकटोक सूर्यास्त दर्शन का अभ्यस्त हो गया था और तभी से मैं इन दिनों के बिना खुशी से नहीं रह पाया। बगीचे में कुछ बहुत खूबसूरत वृक्ष थे- बलूत, बीचफल, हॉर्स एंड स्पैनिश चेस्टनट, नीबू, क्रिप्टोमॅरिया तथा भारतीय राजाओं द्वारा भेंट किए गए सुंदर देवदार। बगीचे में ग्रीष्मगृह, झाड़ीदार बाड़े, जयपत्र के झुरमुट और कई अनगिनत गुप्त स्थल थे, जहां बड़ों से नजर बचाकर छिपा जा सकता था, इतने आराम से कि पकड़े जाने का रंच मात्र भी डर न रहे।

बॉक्स हेजेज में कई फूलदार बाग भी थे। पेमब्रोक लॉज में जब तक मैं रहा, बगीचा प्रतिवर्ष उपेक्षित होता चला गया। बड़े पेड़ गिर गए, रास्तों पर झाड़ियां उग आईं, लॉन की घास बड़ी और अव्यवस्थित हो गई तथा बॉक्स हेजेज एक तरह से पेड़ों में बदल गए। शायद बगीचा अपना शानदार अतीत याद करता था, जब विदेशी राजदूत इसके लॉन पर चहलकदमी करते थे और राजकुमार फूलों की सुव्यवस्थित झाड़ियों की प्रशंसा करते थे। बगीचा अपने अतीत में जीता था और मैं भी इसके साथ अतीत में जीता था। मैं अपने माता-पिता और बहन को लेकर कल्पनाजाल बुना करता।

मैं अपने दादाजी के प्रभावशाली दिनों की कल्पनाएं करता। वयस्कों की जो बातें मैं सुनता था, वे अधिकतर बहुत पहले घटी घटनाओं के बारे में होती थीं। कैसे मेरे दादाजी एल्बा में नेपोलियन से मिले, कैसे मेरी दादी के पिता के चाचा ने अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध में जिब्राल्टर की रक्षा की और कैसे उनके दादाजी काउंटी से अलग कर दिए गए। जब उन्होंने कहा कि एटना पहाड़ की ढलान पर जमे इतने अधिक लावे का मतलब यह है कि दुनिया 4004 ईसा पूर्व से पहले बनी है। कभी-कभी वार्तालाप हाल की घटनाओं पर भी आ जाता। तब मुझसे कहा जाता है कि कैसे कार्लाइल ने हरबर्ट स्पेंसर को 'परफेक्ट वैक्यूम' कहा था या ग्लैडस्टोन से मुलाकात होने पर डार्विन को किस तरह गर्व होता था।

मेरे माता-पिता मर चुके थे और मैं सोचा करता कि आखिर वे किस तरह के इन्सान होंगे। अकेले में मैं बगीचे में घूमा करता, कभी चिड़ियों के अंडे खोजता तो कभी समय की उड़ान पर चिंतन करता। मैं अपनी स्मृतियों के आधार पर यह कह सकता हूं कि चैतन्य मन पर बचपन के सबसे महत्वपूर्ण तथा रचनात्मक प्रभाव उन भगोड़े पलों में पड़ते हैं, जब बच्चा अपनी ही दुनिया में खोया रहता है और वह कभी भी बड़ों से इन पलों का जिक्र नहीं करता। मैं सोचता हूं कि युवावस्था में भी व्यक्ति को ऐसे पल मिलना चाहिए, जब वह बाहर से थोपी दुनिया से अलग अपनी ही दुनिया में घूम सके। इससे उसकी चेतना में इन भगोड़े प्रतीत होने वाले, लेकिन अति महत्वपूर्ण प्रभावों का निर्माण हो सकेगा।

मुझे जैसा याद है, मेरे दादाजी अस्सी पार के व्यक्ति थे। या तो उन्हें बाथ चेयर पर बिठाकर बगीचे में घुमाया जाता या वे अपने कमरे में बैठकर हॉन्सार्ड को पढ़ते। उनकी मृत्यु के समय मेरी उम्र सिर्फ 6 साल थी। उस समय मेरा भाई स्कूल में पढ़ता था। मुझे याद है कि दादाजी की मौत के दिन जब वह गाड़ी में बैठकर घर आया, हालांकि उस समय स्कूल का मध्य सत्र चल रहा था तो मैं उसे देखकर चिल्लाया था, 'हुर्रा' और मेरी आया ने कहा था- 'हश'! आज तुम्हें 'हुर्रा' नहीं कहना चाहिए।' इस वाकए से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मेरे लिए दादाजी कोई खास महत्व नहीं रखते थे।

इसके विपरीत मेरी दादी, जो दादाजी से 23 साल छोटी थीं, मेरे संपूर्ण बाल्यकाल में मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति थीं। वेस्कॉच पुरोहितवादी थीं तथा धर्म और राजनीति के मामलों में उदार थीं (सत्तर वर्ष की उम्र में वे एक व्यक्तिवादी बन गई थीं), मगर नैतिकता के सभी मुद्दों पर बेहद कठोर थीं। दादाजी से विवाह के समय वे बेहद छोटी तथा शर्मीली थीं। मेरे दादाजी विधुर थे तथा उनकी दो संतानें व चार सौतेले बच्चे थे। शादी के कुछ वर्षों बाद वे देश के प्रधानमंत्री बन गए थे। दादी के लिए यह कठिन अग्नि परीक्षा रही होगी। उन्होंने बताया था कि एक बार जब वे लड़कपन में कभी रोजर्स द्वारा किए जाने वाले प्रसिद्ध ब्रेकफास्ट में गई थीं तो उनका शर्मीलापन देख रोजर्स ने कहा था- 'अपनी जुबान थोड़ी खोला करो, तुम्हें इसकी जरूरत है, माय डियर! 'दादी की बातों से जाहिर था कि उन्होंने कभी यह महसूस नहीं किया कि प्यार में डूबना क्या होता है।

उन्होंने एक बार मुझे बताया था कि जब उनके हनीमून पर उनकी मां भी उनके पास पहुंच गईं तो उन्होंने कैसे राहत की सां ली थी। एक अन्य अवसर पर उन्होंने दुःख व्यक्त किया था कि प्यार जैसे तुच्छ विषय पर इतनी अधिक कविताएं क्यों लिखी जाती हैं, लेकिन मेरे दादाजी के लिए वे एक समर्पित पत्नी थीं और मेरी जानकारी में वे अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कभी असफल नहीं हुईं।

एक मां और दादी के रूप में बेहद, परंतु हमेशा बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से नहीं, विनयपूर्ण थीं। मेरे ख्याल में वे कभी उद्दा भावनाओं और प्रचुर जीवनशक्ति को नहीं समझ सकीं। वे चाहती थीं कि हर चीज विक्टोरियन मनोभावों के कोहरे में देखी जाए। मुझे याद है, मैं उन्हें समझाने की कोशिश करता था कि एक ही समय पर दो विरोधाभासी विचार रखना गलत है। जैसे यह सोचना कि सभी लोग अच्छे घरों में रहें, मगर साथ ही नए घर भी न बनें, क्योंकि वे आंखों को खटकते हैं।

दादी के लिए हर मनोभाव का पृथक और विशिष्ट अधिकार होता था और उनका ख्याल था कि सिर्फ तर्क जैसी ठंडी वज की बिना पर एक मनोभाव को दूसरे मनोभाव पर थोपा नहीं जा सकता। उनका लालन-पालन उस जमाने के आदर्शों के अनुरूप हुआ था, वे उच्चारण में गलती किए बिना धाराप्रवाह फ्रेंच, जर्मन और इटालियन भाषाएं बोल सकती थीं। वे शेक्सपीयर, मिल्टन तथा 18वीं सदी के कवियों को निकट से जानती थीं। वे राशि चिन्हों और नौ काव्यदेवियों (यूनानी पुराण में वर्णित) के नाम दोहरा सकती थीं।

उन्हें व्हिग परंपरा के अनुसार अंगरेजी इतिहास का सूक्ष्म ज्ञान था। फ्रेंच, जर्मन और इटालियन साहित्य से वे परिचित थीं। सन 1830 के बाद की राजनीति का उन्हें व्यक्तिगत ज्ञान था, लेकिन तर्क से संबंधित कोई भी बात उनकी मानसिक जिंदगी से अनुपस्थित थी। वे कभी नहीं समझ पाईं कि नदी पर जलबंधक कैसे काम करते हैं, हालांकि मैंने कई लोगों को उन्हें यह समझाने की कोशिश करते हुए सुना था। उनकी नैतिकता विक्टोरियन कट्टरता के स्तर की थी। उन्हें कोई भी यह विश्वास नहीं दिला सकता था कि बात-बात पर कसम खाने वाले व्यक्ति में भी कुछ अच्छे गुण हो सकते हैं। हालांकि कुछ अपवाद थे। वे हॉरेस वालपोल की मित्र बेरी कुमारियों को जानती थीं और एक बार उन्होंने मुझसे निंदारहित स्वर में कहा था कि 'बेरी बहनें पुराने फैशन की थीं और वे कभी-कभी कसमें खाती थीं।'

अपने जैसे अन्य लोगों की तरह वे बायरन के प्रति नरम कोना रखती थीं और उन्हें युवावस्था के नाशुक्रे प्यार का अभागा शिकार मानती थीं, लेकिन यह सहिष्णुता वे शेली के प्रति नहीं दिखाती थीं। उन्हें शेली का जीवन घृणित और उसकी कविता नीरस लगती थी। मेरे ख्याल से कीट्स का तो उन्होंने नाम भी नहीं सुना था। वे गोथे से लेकर शिकार तक के प्राचीन महाद्वीपीय साहित्य से परिचित थीं, लेकिन योरप के तत्कालीन लेखकों के बारे में कुछ नहीं जानती थीं। तुर्गनेव ने एक बार उन्हें अपना उपन्यास दिया था, मगर उन्होंने उसे कभी नहीं पढ़ा। वे तुर्गनेव को अपने किसी मित्र के कजिन से ज्यादा कुछ नहीं समझती थीं। वे जानती थीं कि तुर्गनेव किताबें लिखते हैं, पर यह काम तो लगभग सभी करते थे।

आधुनिक अर्थ में लें तो मनोभावनाओं के उनमें कोई खास चिन्ह नहीं थे, लेकिन कुछ भावनाएं उनमें मौजूद थीं- देश के लिए प्यार, जनचेतना, अपने बच्चों से प्यार उनके लिए प्रशंसनीय भावनाएं थीं। पैसों से प्यार, शक्ति से प्यार तथा अहंकार उनके हिसाब से बुरी भावनाएं थीं। उनका मानना था कि अच्छे व्यक्ति हमेशा अच्छी प्रेरणा से काम करते हैं, लेकिन बुरे व्यक्तियों, यहां तक कि निकृष्टतम व्यक्तियों के जीवन में भी ऐसे क्षण आते हैं, जब वे पूरी तरह बुरे नहीं होते। विवाह की संस्था उनके लिए एक कठिन पहेली थी।

उनके अनुसार एक-दूसरे को प्रेम करना पति-पत्नी का कर्तव्य होता है, लेकिन यह ऐसा कर्तव्य है जो उन्हें बेहद आसानी से नहीं निभाना चाहिए, क्योंकि यदि वे शारीरिक आकर्षण की वजह से एक-दूसरे के करीब आते हैं तो उनके रिश्ते में कोई चीज ठीक नहीं है, लेकिन यह बात वे इस ढंग से नहीं कहती थीं-'तुम जानते हो, मैं कभी नहीं सोचती कि पति-पत्नी का प्यार माता-पिता और संतान के प्यार की तरह पवित्र होता है क्योंकि पति-पत्नी के रिश्ते में कभी-कभी थोड़ा स्वार्थ आ जाता है।'

सेक्स जैसे विषय पर वे अपने विचार इससे बेहतर ढंग से व्यक्त नहीं कर सकती थीं। शायद एक बार मैंने उन्हें इस वर्जित विषय को छूने की कोशिश करते सुना था। यह तब हुआ जब उन्होंने कहा था कि लॉर्ड पामरसन पुरुषों में विचित्र हैं, क्योंकि वे एक अच्छे आदमी नहीं हैं। वे शराब को नापसंद करती थीं, तंबाकू से उन्हें घृणा थी और वे हमेशा शाकाहारी बनने की कगार पर रहती थीं।

उनका जीवन कष्टसाध्य था। वे केवल सादा भोजन ही खाती थीं और सुबह आठ बजे नाश्ता करती थीं और अस्सी साल की उम्र तक चाय के बाद वे कभी भी आरामदायक कुर्सी पर नहीं बैठीं। वे पूर्णतः गैर दुनियावी थीं और दुनियावी सम्मानों के बारे में सोचने वालों से घृणा करती थीं। मुझे खेद के साथ कहना पड़ता था कि महारानी विक्टोरिया के प्रति उनके विचार कहीं भी सम्मानजनक नहीं थे। वे बड़े मजे लेकर बताती थीं कि एक बार जब वे विंडसर (शाही महल) में थी तो कुछ अस्वस्थ महसूस कर रही थी। तब महारानी ने बड़ी विनम्रतापूर्वक कहा था- 'लेडी रसेल बैठ सकती हैं। लेडी फलां-फलां उनके आगे खड़ी हो जाएंगी।'

जब मैं चौदह बरस का हुआ तो दादी की बौद्धिक कूपमंडूकता मेरे लिए दुसाध्य हो गई और उनकी कट्टर नैतिकता मुझे अति लगने लगी और उनका अति शुद्धतावाद भी मुझे अतिशयोक्ति लगने लगा, लेकिन बचपन में उन्होंने मुझे अत्यधिक प्यार दिया और मेरे कल्याण की उन्हें बेहद परवाह थी, अतः मैं उनसे स्नेह करता था। उनके प्यार ने मुझे सुरक्षा की वह भावना दी, जिसकी जरूरत हर बच्चे को होती है। मुझे याद है कि चार-पांच बरस की उम्र में एक बार मैं बिस्तर पर पड़ा सोच रहा था कि दादी मर जाएगी तो कितनी भयंकर बात होगी और जब मेरी शादी के बाद वे वाकई मर गईं तो मुझे बिलकुल भी दुःख नहीं हुआ, लेकिन उम्र गुजरने पर अतीत का चिंतन करते हुए मैंने महसूस किया कि जीवन के प्रति मेरा रवैया, निर्धारित करने में दादी की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

उनकी निडरता, जनचेतना, रिवाजों की अवहेलना तथा बहुमत के प्रति उदासीनता ने मुझे नकल की हद तक प्रभावित किया। उन्होंने मुझे बाइबिल की एक प्रति दी थी, जिसके फ्लाय लीफ (पुस्तक के प्रारंभ या अंत का सादा पन्ना) पर उनके प्रिय उद्धरण अंकित थे। इनमें से एक उद्धरण था- 'बुरा काम करने के लिए बहुमत के पीछे नहीं चलना चाहिए।' इस उद्धरण पर वे बहुत जोर देती थीं और इसी वजह से अपनी जिंदगी के बाद के वर्षों में मैं छोटे अल्पसंख्यक समूहों का साथ देने में कभी नहीं डरा।

आत्मकथा (बर्ट्रेंड रसेल)

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