दो दशक बाद लौटीं राजमाता

Webdunia
मंगलवार, 21 अप्रैल 2009 (15:54 IST)
- राकेश पाठक
ग्वालियर सन्‌ 1989 के आम चुनाव 'बोफोर्स सौदे' की धमक के बीच हुए। लेकिन ग्वालियर अंचल में इसका कोई प्रभाव नहीं था। सिंधिया घराना एक बार फिर जलवा कायम कर रहा था। 22 साल बाद गुना लौटीं 'राजमाता' विजयाराजे सिंधिया ने भाजपा का परचम फहराया तो ग्वालियर में माधवराव का झंडा बुलंद रहा। अगला चुनाव चन्द्रशेखर सरकार गिरने पर जल्दी ही (1991) में हुआ।

नौवीं लोकसभा के चुनाव से पहले राजनीतिक परिदृश्य बहुत बदल गया था। ऐतिहासिक बहुमत के साथ सत्ता में आए राजीव गाँधी पर बोफोर्स सौदे में दलाली के आरोप लगने लगे। विश्वनाथ प्रताप सिंह और उनके साथी कांग्रेस छोड़कर जनमोर्चा बना चुके थे, जो कालांतर में जनता दल के रूप में स्थापित हुआ। 84 में अटलबिहारी वाजपेयी को हराकर राष्ट्रीय राजनीति में उभरे माधवराव सिंधिया, राजीव गाँधी के मंत्रिमंडल में खास अहमियत के साथ रहे। इसी दौर में ग्वालियर में विकास कार्यों के जरिए उन्होंने विकास के मसीहा वाली छवि बनाई।

सिंधिया लगातार दूसरी बार ग्वालियर से मैदान में उतरे। भारतीय जनता पार्टी ने सिंधिया के मुकाबले के लिए खूब खोजबीन कर शीतला सहाय को उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव में पहली बार माधवराव सिंधिया के परिजन प्रचार के लिए जयविलास प्रासाद के परकोटे से बाहर निकले।

सिंधिया की धर्मपत्नी माधवी राजे, पुत्र ज्योतिरादित्य व पुत्री चित्रांगदा राजे ने पूरे क्षेत्र में प्रचार किया। शीतला सहाय के पक्ष में राजमाता विजयाराजे सिंधिया की सभा भी करवाई, लेकिन कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। सिंधिया 1 लाख 49 हजार 425 वोटों के अंतर से जीते।

सन्‌ 89 के आम चुनाव में विजयाराजे सिंधिया एक बार फिर गुना से भाजपा प्रत्याशी थीं। इससे पहले वे 22 साल पहले सन्‌ 67 में वहाँ से जीती थीं। उनके मुकाबले कांग्रेस ने महेंद्रसिंह कालूखेड़ा को मैदान में उतारा। कालूखेड़ा राजमाता के हाथों 1 लाख 46 हजार 290 वोटों से परास्त हो गए। भिण्ड में भाजपा ने नरसिंह दीक्षित को मैदान में उतारा। वे सन्‌ 71 में कांग्रेस के टिकट पर लड़कर हार चुके थे। दीक्षित ने कांग्रेस के कृष्णसिंह को 21 हजार 924 वोटों से हराया। मुरैना में भाजपा के छविराम अर्गल ने कांग्रेस के कम्मोदीलाल जाटव को हराया। सन्‌ 1991 में मध्यावधि चुनाव हुए।

इस दफा फिर विजयाराजे सिंधिया गुना और माधवराव ग्वालियर से जीते। विजयाराजे सिंधिया ने स्वतंत्रता सेनानी शशिभूषण बाजपेयी को हराया। बाजपेयी कभी दिल्ली में जनसंघ के अध्यक्ष प्रो. बलराज मधोक और खरगोन में रामचंद्र 'बड़े' को हरा चुके थे।

माधवराव ने नारायणकृष्ण शेजवलकर को हराया। स्व. राजीव गाँधी ने तब भिण्ड में पत्रकार उदयन शर्मा को भाग्य आजमाने भेजा था, लेकिन भगवा भेसधारी स्वामी योगानंद सरस्वती (भाजपा) के हाथों हार गए। मुरैना में कांग्रेस के बारेलाल जाटव ने छविराम अर्गल को हराया।

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