हर जुबाँ पर यही सवाल, कौन किसके साथ?

Webdunia
शुक्रवार, 15 मई 2009 (10:04 IST)
पंद्रहवीं लोकसभा के लिए मतदान का काम पूरा हो जाने के बाद केवल राजनीतिक दलों में ही नहीं राजधानी दिल्ली से लेकर कस्बों और गाँवों तक यह बहस छिड़ गई है कि अगली सरकार कौन बनाएगा और कौन किसके साथ जाएगा।

पाँच चरणों में हुए मतदान के दौरान ही यह अनुमान लगाया जा रहा था कि इस बार भी लोकसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा। चुनाव पूरा होने के बाद न्यूज चैनलों के सर्वेक्षणों से इस बात को बल मिला है कि इस बार भी जनादेश खंडित होगा तथा अगली सरकार बनाने के लिए दलों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।

इस बार भी यदि किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो 1989 से लगातार सातवीं बार त्रिशंकु लोकसभा गठित होगी। करीब डेढ़ महीने के धुआँधार चुनाव प्रचार से मुक्त होने के बाद सभी दलों के नेता सरकार बनाने के गुणा-भाग में लग गए हैं। वहीं आम लोगों के बीच भी यह चर्चा शुरू हो गई है कि अगली सरकार कैसे बनेगी और कौन किसका साथ देगा?

ट्रेन हो या बस, पान की दुकान या चाय की दुकान, दफ्तर या घर हर जगह कोई किसी की सरकार बना रहा है तो कोई किसी की और इसके पीछे अपनी दलीलें भी दे रहा है।

यह चर्चा आम है कि भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की प्रधानमंत्री बनने की प्रतीक्षा समाप्त होगी या नहीं अथवा डॉ. मनमोहनसिंह ही सात रेसकोर्स रोड में बने रहेंगे। त्रिशंकु लोकसभा होने की स्थिति में क्या पिछले कुछ वर्षों में भाजपा का साथ छोड़ गए दल फिर उसके साथ आ जुटेंगे और प्रधानमंत्री बनने की आडवाणी की दिली इच्छा पूरी हो सकेगी।

इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि 'हाथी' किस करवट बैठेगा, पंजे के साथ जाएगा या कमल के साथ। भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए वामदल एक बार फिर कांग्रेस से हाथ मिलाएँगे या तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने के अपने प्रयासों में जुटे रहेंगे। क्या कांग्रेस सरकार बनाने के लिए अपने पुराने साथियों को छोड़कर नए सहयोगियों को गले लगाएगी।

लोगों का मानना है कि नई सरकार बनाने में राजनीति की तीन देवियों (जया, माया और ममता) की महत्वपूर्ण भूमिका होगी लेकिन यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या जयललिता और मायावती एक साथ आ सकती हैं और उन्हें एक दूसरे को नेता स्वीकार करने में कोई परहेज नहीं होगा।

राजनीतिक दलों के नेता सरकार बनाने के लिए 272 सीटों के जादुई आँकड़े और संभावित नए सहयोगियों को लेकर गुणा-भाग करने में भले ही जुटे हुए हों लेकिन शतरंज की बिसात 16 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद ही बिछेगी और तब शुरू होगा शह और मात का असली खेल।

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