साल के पेड़ से बुझाते हैं प्यास

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आदिवासियों के लिए साल वृक्ष किसी कल्प वृक्ष से कम नहीं है। भरी गर्मी में घने जंगलों में जब कंठ सूखने लगे और पास में पानी नहीं हो तो साल की टहनी से बूंद-बूंद टपकने वाले रस को दोने में एकत्र कर ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। यह परंपरागत तरीका वर्षों से आदिवासी अपनाए हुए हैं।

जंगल में लेकर नहीं जाते पानी : जंगलों में कोसा, सालबीज, धूप, तेंदूपत्ता, चार सहित विविध वनोपज संग्रह के लिए पहुँचे ग्रामीण आमतौर पर पानी साथ लेकर नहीं जाते।

जंगल पहुँचते ही साल पत्ते का दोना तैयार करते हैं, तत्पश्चात पत्तों से लदी साल की टहनी काटकर उल्टा लटका देते हैं। कटी हुई टहनी का रस बूंद-बूंद टपकता है जिससे दोना भर जाता हैं जिसे पीकर ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। इस संबंध में नामलसर बेरियर में पदस्थ वनरक्षक अनिल नेताम, चौकीदार परशुराम नेताम ने बताया कि गर्मी के दिनों की अपेक्षा बारिश और ठंड के दिनों में साल टहनी से रस ज्यादा टपकता है। साल से प्राप्त जल (रस) हल्का कसैला होता है परंतु नुकसानदेह नहीं होता। लिहाजा साल रस का उपयोग सदियों से किया जा रहा है।

और भी हैं कई फायदे : साल वृक्ष से प्राप्त पत्ता, पल, लकड़ी, धूप, दातून यहाँ तक पानी भी ग्रामीण संग्रहित करते हैं। साल वृक्षों के जड़ों के आस-पास उपजने वाला मशरूम (बोड़ा) लगभग सभी की प्रिय सब्जी है जो 300 रुपए किलो तक बिकती है।

साल रस शर्करा भोजन : बस्तर परिसर के पूर्व प्रभारी व जाने-माने वनस्पति शास्त्री डॉ. एमएल नायक ने बताया कि साल पत्तों से दोने में उतरा साल रस पूर्ण भोजन है। जिसे शर्करा भोजन कह सकते हैं। इसमें प्रोटीन को छोड़ शेष तत्व होते हैं। यह रस जमीन से वृक्षद्वारा तत्वयुक्त जल है। इसके सेवन से कोई हानि नहीं है। इस तरह के दूसरे वृक्षों का रस भी सेवन किया जा सकता है।

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