Dharma Sangrah

किसके बच्चे ज्यादा समझदार...?

गायत्री शर्मा
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बच्चों की प्रतिभा कुछ हद तक अनुवांशिकता पर भी निर्भर करती है। बच्चों में कुछ गुण व आदते उनके माता-पिता की आदतों के समान होती है। यदि माता- पिता पढे-लिखे व शीक्षित हो तो उनके बच्चे भी समझदार व कुशाग्र बुद्धि वाले होते हैं।

आजकल शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार से हमारी सोच में भी बहुत बदलाव आया है। कल तक पुरूष ही नौकरियाँ करते थें परंतु अब महिलाएँ भी कामकाजी व नौकरीपेशा हो गई है। अब वो भी पुरूषों के समान घर से बाहर निकलकर अपनी एक अलग पहचान बना रही है।

इतने पर भी हमारे समाज की विचारधारा पूरी तरह से नहीं बदली है। हमारे समाज में आज भी कामकाजी महिलाओं को हेय दृष्टि से देखा जाता है व उनके बारे में अक्सर यह जुमला कहा जाता है कि 'नौकरी करती है तो बच्चों का क्या खाक खयाल रखती होगी?' इसी के साथ ही कामकाजी महिलाओं के बच्चों के बिगड़ैल, पढाई में कमजोर व असभ्य होने की बात कही जाती है लेकिन सत्य इसके ठीक विपरीत है।

  माता-पिता के कामकाजी व शिक्षित होने के कारण बच्चों पर भी पढ-लिखकर कुछ बनने का दबाव रहता है, जो उन्हें पढाई के प्रति गंभीर बना देता है।      
एक शोध के मुताबिक कामकाजी महिलाओं के बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक कुशाग्र बुद्धि के होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी माँ नौकरीपेशा होती है और वे बच्चों की पढाई की अहमियत को समझती है।

कामकाजी महिलाएँ आमतौर पर बच्चों को घर पर अधिक समय नहीं दे पाती है। कामकाजी होने के कारण कम उम्र में ही उनके बच्चों को घर पर अकेले रहना पड़ता है। बच्चों पर कम उम्र में ही जिम्मेदारियाँ डालने से वे बचपन से ही आत्मनिर्भर बन जाते हैं।

माता-पिता के कामकाजी व शिक्षित होने के कारण बच्चों पर भी पढ-लिखकर कुछ बनने का दबाव रहता है, जो उन्हें पढाई के प्रति गंभीर बना देता है। कामकाजी महिलाओं की एक खासियत और होती है कि वो अपनी दोहरी भूमिकाएँ निभाती है। एक तो अपने घर-परिवार की जिम्मेदारियों की और दूसरी अपने कार्यस्थल की जिम्मेदारियों की।

ये दोहरी भूमिकाएँ उसे एक अनुशासित जीवन देती है। यहीं अनुशासन वह अपने बच्चों को भी सिखाती है। महिलाओं द्वारा नौकरी करना उसे उसकी जिम्मेदारियों से छुटकारा नहीं दिलाता है बल्कि उसे अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गंभीर बना देता है।

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