अध्यादेश जारी करने का राष्ट्रपति का अधिकार

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लोकपाल विधेयक के कानून बनने का सफर काफी लंबा है। यह विधेयक लोकसभा
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ने विचार के लिए स्थायी समिति (स्टैंडिंग कमेटी) को सौंपा है। यह कमेटी लोकपाल विधेयक को अंतिम रूप देगी, लेकिन यह प्रक्रिया आसान नहीं है। ऐसे कई विधेयक सालों पहले संसद में पेश किए गए थे, लेकिन अब तक कानून नहीं बन पाए।

कानून बनाने की इस लंबी प्रक्रिया के अलावा सरकार विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति के अध्यादेश जारी करने की शक्ति की भी मदद ले सकती है। संविधान के अनुच्छेद 123 के अंतर्गत राष्ट्रपति के पास अध्यादेश जारी करने का अधिकार है, लेकिन वे इसका इस्तेमाल तभी कर सकते हैं जबकि संबद्ध बिल को संसद की मंजूरी दिलाने के लिए पर्याप्त समय न हो और कानून बनाना अनिवार्य हो।

हालाँकि, उनके इस अधिकार के साथ तीन शर्तें जुड़ी हैं। पहली, राष्ट्रपति कैबिनेट की अनुशंसा के बाद ही अध्यादेश जारी कर सकते हैं। दूसरी, अध्यादेश को संसद की अगली बैठक के छः सप्ताह के अंदर ही उसके सामने पेश करना अनिवार्य है अन्यथा वह निष्प्रभावी हो जाएगा। तीसरी शर्त है कि अध्यादेश तभी जारी किया जा सकता है जबकि संसद के दोनों में से किसी सदन का सत्र नहीं चल रहा हो।

राज्यों के लिए भी कानून बना सकता है केंद् र : भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों को स्पष्ट रूप से विभाजित किया गया है। इसके लिए विधायी शक्तियों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है- केंद्र सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची।

केंद्र सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाने के सभी अधिकार केंद्र के पास होते हैं जबकि राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकार के पास होता है। समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों ही के पास कानून बनाने का अधिकार होता है, लेकिन सामान्य परिस्थितियों में केंद्रीय विधायिका के कानूनों को ही वरीयता मिलती है। केंद्र सरकार चाहे तो राष्ट्रीय हित में राज्य सूची में शामिल विषयों पर भी कानून बना सकती है, लेकिन इसके लिए एक प्रस्ताव राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होता है।
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