धरती से चंद्रमा तक की यात्राएँ

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चंद्रमा के बारे में पता लगाने की कोशिशें बहुत सालों से चली आ रही हैं। इसके बारे में सबसे पहली जानकारी तस्वीरों द्वारा सोवियत यूनियन को 1959 में प्राप्त हुई थी। ऐसी ही एक पहल को बीसवीं सदी की एक सबसे बड़ी पहल के रूप में माना जा सकता है, वह है चाँद पर मानव के पहले कदम जो सन् 1969 में चाँद पर पड़े थे।

उसके बाद 1990 में जापान ने अपना 'हाईटेन' नामक उपग्रह लांच कर विश्व में चंद्रकक्ष उपग्रह लांच करने वाले तीसरे देश का स्थान प्राप्त कर लिया था, लेकिन इस स्पेसक्राफ्ट के ट्रांसमीटर के खराब हो जाने की वजह से इससे कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई।

रूस ने जब पहली बार मानव निर्मित यान अंतरिक्ष में भेजा तो अमेरिका का सारा ध्यान अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की ओर जा लगा। अमेरिकी राष्ट्रपति आइजेनहॉवर ने नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) बना दी। यह 29 जुलाई 1958 का समय था। अक्टूबर से नासा ने काम करना शुरू कर दिया।

नासा ने अंतरिक्ष में अपने अभियान के 50 साल इस अक्टूबर में पूरे कर लिए हैं। नासा का पहला महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट 'प्रोजेक्ट-मरक्यूरी' था। 1961 में एलन बी. शेफर्ड पहला अमेरिकन था जो अंतरिक्ष में गया। वह कुछ मिनट ही इस रोमांच को महसूस कर सका। इसके बाद जॉन ग्लेन ने धरती का चक्कर लगाया।

नासा के प्रोजेक्ट-मरक्यूरी ने यह साबित कर दिया कि मनुष्य को अंतरिक्ष में पहुँचाया जा सकता है। अपोलो मिशन नासा के लिए सबसे महत्वपूर्ण मिशन था जिसमें इनसान को चाँद पर भेजकर सही-सलामत वापस लाना भी था। 1967 में अपोलो-1 असफल रहा और उसमें एक अंतरिक्ष यात्री की मौत हो गई।

इसके बाद अपोलो-8 और अपोलो-10 को बिना मनुष्य के चाँद पर भेजा गया, ताकि वे तस्वीरें भेज सकें और चीजों को समझने में मदद मिल सके। फिर से तैयारी हुई और 20 जुलाई 1969 को अपोलो-11 ने पहली बार मनुष्य को चाँद तक पहुँचाया।

सन् 1994 में नासा द्वारा भी एक क्लेमेन्टाइन मिशन शुरू किया गया था और उसके बाद लूनर प्रोस्पेक्टर 1998 में लांच किया गया। अमेरिका ने सबसे पहले चंद्रमा पर उतरने का श्रेय प्राप्त किया, जब नील आर्म स्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन पहली बार 20 जुलाई 1969 में लूनर मॉड्यूल ईगल के साथ चंद्रमा पर उतरे। इन दोनों ने ही धरती पर वापस आने से पहले चंद्रमा की सतह पर पूरा एक दिन बिताया। ऐसे ही 6 मिशन सन् 1969 से लेकर सन् 1972 तक अमेरिका द्वारा किए गए।

इसके बाद चंद्रमा पर शोध के लिए सितंबर 2003 में यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने 'स्मार्ट' नामक एक उपग्रह लांच किया, जिसका प्रमुख कार्य चंद्र कक्ष की एक्स-रे तस्वीरें प्रदान करना था। यह उपग्रह 2004 में लांच हुआ और 2006 तक वह चंद्रकक्ष में बना रहा, जिसके बाद उसे वहीं नष्ट कर दिया गया।

उसके बाद अब चंद्रयान नामक भारतीय उपग्रह अपने मिशन के लिए तैयार है। इस उपग्रह को 22 अक्टूबर 2008 को लांच किया जाएगा। यह चंद्रमा के ध्रुवीय प्रदेशों में खनिज और रेडियोधर्मी तत्वों का पता लगाएगा और उसकी मिट्टी का अध्ययन करेगा। चंद्रयान-1 में कोई भी यात्री नहीं जा रहा है, सिर्फ उपकरण भेजे जा रहे हैं।

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