नवजीवन ट्रस्ट है राष्ट्रपिता का उत्तराधिकारी

Webdunia
गुरुवार, 5 मार्च 2009 (00:54 IST)
केन्द्र सरकार महात्मा गाँधी के व्यक्तिगत सामान की नीलामी रोकने के लिए जहाँ प्रयासों में जुटी है, वहीं 1940 में राष्ट्रपिता द्वारा की गई वसीयत बताती है कि उनकी सभी संपत्ति का कानूनी उत्तराधिकारी अहमदाबाद स्थित नवजीवन ट्रस्ट है।

महात्मा गाँधी ने वसीयत में अपनी संपत्ति और अपनी लिखित रचनाओं का कानूनी उत्तराधिकारी ट्रस्ट को बनाया था। इस वसीयत की एक प्रति पीटीआई के पास है।

वसीयत में गाँधीजी ने लिखा है मुझे नहीं लगता कि मेरे पास कोई संपत्ति है। बहरहाल, सामाजिक परंपरा या कानून के अनुसार जिसे मेरा माना जाता है, कोई भी चल या अचल संपत्ति किताबें आलेख आदि जिनमें मैंने लिखा है या आगे लिखूँगा भले ही वे प्रकाशित या अप्रकाशित हों, उन सभी का कॉपीराइट मैं नवजीवन ट्रस्ट को उत्तराधिकारी के रूप में सौंपता हूँ, जिसे मैं अपना उत्तराधिकारी घोषित करता हूँ।

महात्मा गाँधी के पाँच निजी सामान की गुरुवार को न्यूयॉर्क में एंटीकोरम ऑक्शनर द्वारा नीलामी होना तय है। इनमें राष्ट्रपिता का धातु की फ्रेम वाला ऐतिहासिक गोल चश्मा, एक जेबघड़ी चप्पल और बरतन शामिल हैं।

नवजीवन ट्रस्ट की स्थापना महात्मा गाँधी ने मोहनलाल भट्ट के साथ की थी और इसकी डीड ऑफ ट्रस्ट का पंजीकरण 26 मई 1929 को हुआ था। गाँधीजी की वसीयत हस्तलिखित है और इस पर 20 फरवरी 1940 को हस्ताक्षर किए गए थे। इसमें प्यारेलाल नायर और किशोरलालजी मशरूवाला के नाम गवाह के तौर पर हैं।

जिस समय वसीयत पर हस्ताक्षर किए गए सरदार वल्लभभाई पटेल, महादेव हरिभाई देसाई और नरहरि द्वारकादास पारिख ट्रस्ट के न्यासी थे।
वसीयत के अनुसार गाँधीजी ने इसे लागू करवाने की जिम्मेदारी महादेव हरिभाई देसाई और नरहरि द्वारकादास पारिख को सौंपी थी।

राष्ट्रपिता ने यह भी कहा था कि उनके निधन के बाद नवजीवन ट्रस्ट उनकी किताबों की बिक्री और कॉपीराइट से मिलने वाले धन का 25 प्रतिशत हर साल हरिजन सेवक संघ को सौंपेगा।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को नवजीवन ट्रस्ट के इस अनुरोध पर एक अंतरिम स्थगनादेश जारी किया था कि नीलाम की जाने वाली गाँधीजी की निजी वस्तुओं की बिक्री नहीं की जा सकती, क्योंकि वे भारत की हैं और उन्हें देश से गैर कानूनी ढंग से ले जाया गया है।

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