दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि मध्यलिंगी (जो स्त्री या पुरुष नहीं हैं) लोग वंचित और अभागे वर्ग से हैं, जिन्हें पुनर्वास और सामाजिक सुरक्षा के लिए सरकार के ध्यान की जरूरत है।
न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल की पीठ ने कहा उन्हें (मध्यलिंगयों को) उचित पुनर्वास और सामाजिक सुरक्षा की जरूरत है तथा आप (सरकार) उन्हें नौकरी और उचित पुनर्वास मुहैया कराकर बड़ी सामाजिक सेवा करेंगे।
अदालत ने इस बात पर चिंता जताई कि सरकार मध्यलिंगियों के मामले को गंभीरता से नहीं ले रही। अदालत ने सरकार को यह बताने के निर्देश दिए कि वह ऐसे लोगों के लिए क्या कर रही है, जो स्त्री या पुरुष नहीं हैं।
पीठ ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से पेश वकील के उस बयान पर कड़ा रुख अपनाया जिसमें कहा कि यह मामला मंत्रालय के दायरे में नहीं आता। न्यायाधीशों ने कहा कि सरकार यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती कि यह एक मंत्रालय का काम नहीं है।
पीठ उस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सरकार को यह निर्देश देने की माँग की गई है कि बिना किसी भेदभाव के देश के अन्य नागरिकों की तरह ही मध्यलिंगियों को समान उपचार उपलब्ध कराने के लिए दिशा-निर्देश तय किए जाएँ।
वकील राकेश पाराशर ने याचिकाकर्ता की ओर से कहा कि मध्यलिंग में शारीरिक असामान्यता प्राकृतिक है और इसके लिए कोई चिकित्सा पद्धति नहीं है।
याचिकाकर्ता ने तीन लोगों के उदाहरण पेश करते हुए कहा कि यह प्राकृतिक घटनाक्रम है और इसमें ऑपरेशन या हार्मोन उपचार से मदद नहीं मिलती।
याचिकाकर्ता ने कहा कि एक मामले में उड़ीसा के एक ऐसे व्यक्ति को अपनी सीआईएसएफ की नौकरी से हाथ धोना पड़ा जो खुद के लड़की होने का दावा कर रहा था। पिछले साल नवम्बर में उसका लिंग परीक्षण हुआ तो वह उसमें न लड़का निकला और न ही लड़की। वह मध्यलिंगी निकला।
उन्होंने कहा कि एक लड़की से 2006 के एशियन खेलों में मिला उसका रजत पदक छीन लिया गया, जिसके चलते उसने आत्महत्या करने की कोशिश की और वह भारतीय रेलवे के लिंग परीक्षण में फेल हो गई।
याचिकाकर्ता ने कहा कि मध्यलिंगी समुदाय को मतदान का भी अधिकार नहीं है, क्योंकि वे न तो पुरुष की श्रेणी में आते हैं और न महिला की श्रेणी में।
मध्यलिंगी समुदाय के साथ होने वाले इस भेदभाव और उपेक्षा पर नाराजगी जताते हुए अदालत ने कहा यह समाज के साथ एक मजाक है कि ऐसे लोगों को चुनाव में चुन तो लिया जाता है, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं है।
अदालत ने केंद्र को अगली सुनवाई की तारीख तक जवाब दाखिल करने को कहा है। अदालत ने कहा कि ये लोग आम लोगों को धन वसूली के लिए परेशान करने जैसा काम इसलिए करते हैं, क्योंकि उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है। यह अति वंचित और अभागा वर्ग है।