साहित्य को पंखहीन छोड़ गए विष्णु प्रभाकर

Webdunia
शनिवार, 11 अप्रैल 2009 (11:56 IST)
एक लंबे रास्ते पर सड़क के किनारे उसकी दुकान थी। राहगीर वहीं दरख्तों के नीचे बैठकर थकान उतारते और सुख-दु:ख का हाल पूछते। इस प्रकार तरोताजा होकर राहगीर अपने रास्ते पर आगे बढ़ जाते।

' जीने के लिए सौ की उम्र छोटी है' कहने वाले विष्णु प्रभाकर की कहानी चोरी का अर्थ की ये पंक्तियाँ मानो उन्होंने स्वयं पर ही लिखी हों। साहित्य को तरोताजा कर आवारा मसीहा के रचनाकार हमारे बीच से चले गए, लेकिन लोगों के सुख-दुःख में झाँकती उनकी पंखहीन जैसी रचनाएँ हमेशा हमारे साथ रहेंगी।

प्रभाकर को पद्मभूषण दिया गया, लेकिन सरकार द्वारा किसी साहित्यकार की देर से सुध लेने का आरोप लगाते हुए उन्होंने सम्मान वापस कर दिया।

उनके बारे में नया ज्ञानोदय में प्रभाकर श्रोत्रिय ने लिखा था- विष्णुजी साहित्य और पाठकों के बीच स्लिप डिस्क के सही हकीम हैं। यही कारण है कि उनका साहित्य पुरस्कारों के कारण नहीं पाठकों के कारण चर्चित हुआ।

प्रभाकर का जन्म 20 जुलाई 1912 (सरकारी दस्तावेजों और प्रमाणपत्रों में 21 जून) को उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर गाँव में हुआ था। कम आयु में ही वे पश्चिम उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर से तत्कालीन पंजाब के हिसार चले गए।

प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही।

अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही।

हिन्दी मिलाप में 1931 में पहली कहानी दीवाली छपने के साथ उनके लेखन को एक नया उत्साह मिला और उनकी कलम से साहित्य को समृद्ध करने वाली रचनाएँ निकलने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह करीब आठ दशकों तक सक्रिय रहा। आजादी के बाद उन्हें दिल्ली आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक बनाया गया।

नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने पर वे शरतचंद्र की जीवनी पर आधारित उपन्यास आवारा मसीहा लिखने के लिए प्रेरित हुए। इस उपन्यास के लिए उन्होंने शरत बाबू से जुड़े स्रोत जुटाए, कई स्थानों का दौरा किया और बांग्ला भाषा सीखी। यह जीवनी छपकर जब बाजार में आई तो साहित्य जगत में विष्णु प्रभाकर के नाम की धूम मच गई।

प्रचूर साहित्य सृजन के बावजूद और अर्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी सम्मान मिलने के बावजूद आवारा मसीहा उनकी पहचान का पर्याय बन गया और इसने साहित्य में उनका अलग मुकाम बनाए रखा।

प्रभाकर के लिखे उपन्यासों में ढलती रात, आवारा मसीहा, अर्धनारीश्वर, धरती अब भी घूम रही है, क्षमादान, दो मित्र प्रमुख हैं। उन्होंने तीन भागों में अपनी आत्मकथा पंखहीन भी लिखी।

विष्णु प्रभाकर को साहित्य सेवा के लिए पद्मभूषण, अर्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी सम्मान और मूर्तिदेवी सम्मान सहित देश-विदेश के अनेक सम्मानों से नवाजा गया।

Show comments

जरूर पढ़ें

निशिकांत दुबे, तू मुंबई आजा समंदर में डुबा डुबाकर मारेंगे

बेरहम मालिक ने अपने पालतू डॉग के साथ की बेदर्द हरकत

...तो हम राहुल गांधी और खरगे को भी नहीं छोड़ेंगे, CM हिमंता विश्व शर्मा की चेतावनी

नमस्ते! मैंने कक्षाओं में विस्फोटक रखे हैं, करीब 100 स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी, पेरेंट्‍स में दहशत

दो मुख्‍यमंत्रियों की गिरफ्तारी करवाने वाले दबंग ED अधिकारी कपिल राज का इस्तीफा, 15 साल की शेष थी सर्विस

सभी देखें

नवीनतम

LIVE: चंदन मित्रा हत्याकांड में बंगाल से 5 आरोपी गिरफ्तार

यात्री ने उड़ते विमान में दरवाजा खोलने की कोशिश की, चालक दल के सदस्य को पीटा

450 नरमुंडों वाली कावड़ देख झूमे श्रद्धालु, हरिद्वार से हरियाणा ‘बोल बम’ की गूंज

मुंबई के बांद्रा में 2 मंजिला इमारत गिरी, 15 लोग घायल

Bihar : प्रधानमंत्री मोदी की रैली में लहराए काले झंडे, 3 लोगों को हिरासत में लिया