सितार वादन का घराना हैं पंडित रविशंकर

सात अप्रैल जन्मदिन पर विशेष

Webdunia
सोमवार, 6 अप्रैल 2009 (19:26 IST)
पंडित रविशंकर भारतीय शास्त्रीय संगीत का ऐसा चेहरा हैं, जिन्हें विश्व संगीत का गॉडफादर कहा गया है। वे केवल सितार वादक नहीं, बल्कि एक घराना हैं जिसका नई पीढ़ी के साधक अनुसरण कर रहे हैं।

पंडित रविशंकर देश के उन प्रमुख साधकों में से हैं, जो देश के बाहर काफी लोकप्रिय हैं। वे लंबे समय तक तबला उस्ताद अल्ला रक्खा खाँ, किशन महाराज और सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान के साथ जुड़े रहे।

वाइलिन वादक येहुदी मेनुहिन और फिल्मकार सत्यजीत रे के साथ उनके जुड़ाव ने उनके संगीत सफर को नया मकाम प्रदान किया।

पंडित रविशंकर को उनके संगीत सफर के लिए 1999 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया। उन्हें 14 मानद डॉक्ट्रेट, पद्म विभूषण, मेगसायसाय पुरस्कार, तीन ग्रेमी अवॉर्ड और 1982 में गाँधी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ मौलिक संगीत के लिए जार्ज फेन्टन के साथ नामांकन मिला था।

पंडितजी का जन्म उत्तरप्रदेश के वाराणसी में हुआ था। उनका परिवार मूलतः पूर्वी बंगाल के जैस्सोर जिले के नरैल का रहने वाला था, जो अब बांग्लादेश में है।

प्रसिद्ध सितार वादक एवं शास्त्रीय गायक शुजात हुसैन खान ने कहा कि मेरा मानना है इस वक्त सितार में दो प्रमुख विरासत हैं। वर्तमान दौर के साधक उस्ताद विलायत खाँ साहब और पंडित रविशंकर।

खान ने कहा पंडितजी ने सितार को पूरी दुनिया में लोकप्रिय किया और उन्होंने एक राह दिखाई, जिस पर नई पीढ़ी के संगीतज्ञ चल रहे हैं।

उन्होंने कहा सितार बहुआयामी साज होने के साथ ही एक ऐसा वाद्य यंत्र है, जिसके जरिये भावनाओं को प्रकट किया जाता है।

शास्त्रीय संगीत में पंडित रविशंकर के कद का पता दो ग्रेमी पुरस्कार विजेता तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन के उस बयान से पता चलता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे अपने जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार पंडित रविशंकर द्वारा उन्हें 'उस्ताद' कहने को मानते हैं। उस वक्त उनकी उम्र केवल 20 वर्ष की थी।

पंडितजी के बारे में जार्ज हैरिसन ने कहा है कि रविशंकर विश्व संगीत के गॉडफादर हैं। पंडित रविशंकर ने पहला कार्यक्रम 10 साल की उम्र में दिया था। भारत में पंडित रविशंकर ने पहला कार्यक्रम 1939 में दिया था। देश के बाहर पहला कार्यक्रम उन्होंने 1954 में तत्कालीन सोवियत संघ में दिया था और यूरोप में पहला कार्यक्रम 1956 में दिया था।

1944 में औपचारिक शिक्षा समाप्त करने के बाद वे मुंबई चले गए और उन्होंने फिल्मों के लिए संगीत दिया। उन्होंने सारे जहाँ से अच्छा का संगीत बनाया है।

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