सूचना अधिकार के प्रति जागरूकता की कमी

Webdunia
शनिवार, 8 मई 2010 (18:23 IST)
सरकार ने जनता को सूचना का कानूनी अधिकार भले ही दे दिया है पर अभी भी आम जनता तो क्या विभागों के लोक सूचना अधिकारियों तक में इस कानून की जानकारी और जागरूकता का अभाव है।

इस बार में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सीपी जोशी के प्रदेश राजस्थान में कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार वहाँ 18 प्रतिशत लोक सूचना अधिकारियों (पीआईओ) को इसके आवेदन फार्म तक की जानकारी नहीं है और तो और केवल 20 प्रतिशत पीआईओ को पता है कि इस नए कानून के तहत उन्हें पीआईओ के रूप में जनता और अपने विभाग के बीच सूचना के आदान-प्रदान का माध्यम बनाया गया है।

रपट के बारे में सूचना के अधिकार के अधिकार की जानकारी जिन लोगों को है उनमें से बहुत कम लोग इसका उपयोग कर रहे हैं।

बाजार प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ता मामलों पर अध्ययन एवं परामर्श सेवा देने वाले गैर सरकारी संगठन कट्स इंटरनेशनल ने महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी योजना, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना और इंदिरा आवास योजना में भ्रष्टाचार का पता लगाने और इसे रोकने के लिए आरटीआई के उपयोग और प्रभाव जानने के लिए एक सर्वेक्षण किया। यह सर्वेक्षण राजस्थान के शहरी और अर्धशहरी इलाकों में किया गया।

कट्स की इस रिपोर्ट को प्रस्तुत करने वाले मधुसूदन शर्मा ने कहा कि इन योजनाओं में 78 प्रतिशत पीआईओ ने कहा कि उन्हें इस कानून की जानकारी है, पर उनमें से ज्यादातर ने इस अधिनियम के तहत सूचना उपलब्ध कराने में उदासीनता दिखाई।

कट्स की सर्वे रिपोर्ट की जानकारी देते हुए संस्था के निदेशक जॉर्ज चेरियन ने बताया कि जयपुर और टोंक जिलों में संस्था इस सर्वेक्षण में मात्र 37 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्होंने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के बारे में सुना है, जबकि इनमें से 5-6 प्रतिशत लोग ही इसका उपयोग कर रहे हैं।

राजस्थान में मात्र 26 प्रतिशत लोग जानते हैं कि आरटीआई के लिए कोई आवेदन फार्म भी होता है। जबकि सिर्फ सात आठ प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं, जिन्हें आरटीआई के तहत 30 दिन में जवाब मिलने की समय सीमा अथवा सूचना न मिलने पर प्रथम अथवा द्वितीय अपीलीय अधिकारी की जानकारी है।

रिपोर्ट के मुताबिक 43 लोगों ने कहा कि भ्रष्टाचार रोकने में आरटीआई एक सक्षम हथियार हो सकता है। 39 प्रतिशत ने कहा कि यह कानून लागू होने से सरकार की योजनाओं में पारदर्शिता आई है।

सर्वे में शामिल किए गए लोगों ने कहा कि निगरानी की कमी, बड़े अधिकारों के ध्यान न देने और जनभागीदारी के अभाव में नरेगा, इंदिरा आवास योजना और स्वण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना जैसे कार्यक्रमों में भ्रष्टाचार को जन्म मिलता है।

चेरियन ने कहा कि सूचना के अधिकार के साथ-साथ जबावदेही का अधिकार भी होना चाहिए, ताकि सरकार के हर स्तर पर सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित कराई जा सके। राजस्थान सरकार के प्रशासनिक सुधार विभाग के उपसचिव एसपी बस्वाला ने कहा कि नरेगा और इंदिरा आवास जैसी योजनाओं में जन-भागीदारी बहुत जरूरी है।

रिपोर्ट में जिला परिषद जयपुर के मुख्य कार्यकारी निष्काम दिवाकर के हवाले से कहा गया है कि आम लोगों को उनके अधिकारों की प्रति जागरूक किया जाएगा, तभी कल्याणकारी योजनाओं को कारगर तरीके से लागू किया जा सकता है। (भाषा)

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