शंखपुष्पी

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देसी जड़ी-बूटियों में शंखपुष्पी एक अत्यंत गुणकारी तथा विशेष रूप से मस्तिष्क और स्नायविक संस्थान को बल देने वाली वनस्पति है। इसके फूल शंख की आकृति के होते हैं, इसलिए इसे शंखपुष्पी कहते हैं और बोलचाल की भाषा में शंखाहुली भी कहते हैं। आयुर्वेदिक ग्रंथों में शंखपुष्पी की बहुत प्रशंसा की गई है।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- शंखपुष्पी। हिन्दी- शंखाहुली। मराठी- शंखावड़ी। गुजराती- शंखावली। बंगला- शंखाहुली, डाकुनी। कन्नड़- शंखपुष्पी। लैटिन- प्लेडेरा डेकूसेटा।

गुण : शंखपुष्पी दस्तावर, मेधा के लिए हितकारी, वीर्यवर्द्धक, मानसिक दौर्बल्य को नष्ट करने वाली, रसायन, कसैली, गर्म तथा स्मरणशक्ति, कांति, बल और अग्नि को बढ़ाने वाली एवं दोष, अपस्मार, कुष्ठ, कृमि तथा विष को नष्ट करने वाली है। यह स्वर को उत्तम करने वाली, मंगलकारी, अवस्था स्थापक तथा मानसिक रोग को नष्ट करने वाली है।

परिचय : फूलों के भेद से यह तीन प्रकार की होती है- (1) सफेद फूल वाली (2) लाल फूल वाली (3) नीले फूल वाली। तीनों के गुण एक समान हैं। शंखपुष्पी से तात्पर्य सफेद फूल वाली से होता है।

आयुर्वेद ने मनुष्य के मस्तिष्क को बल देने वाली जिन प्रमुख तीन वनस्पतियों की चर्चा की है, उनमें से एक है यह शंखपुष्पी और अन्य दो हैं ब्राह्मी तथा वच।

उपयोग : शंखपुष्पी का प्रयोग दिमागी ताकत तथा याददाश्त बढ़ाने, अनिद्रा और अपस्मार रोग दूर करने, फिरंग, सुजाक, रक्तार्श, मानसिक रोग, उन्माद, भ्रम आदि को नष्ट करने में लाभदायक सिद्ध होता है। इसका महीन पिसा हुआ चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह-शाम मीठे दूध के साथ या मिश्री की चाशनी के साथ सेवन करना चाहिए।

शुक्रमेह : शंखपुष्पी का महीन चूर्ण एक चम्मच और पिसी हुई काली मिर्च आधी चम्मच दोनों को मिलाकर सुबह-शाम पानी के साथ फांकने से शुक्रमेह रोग ठीक होता है।

ज्वर में प्रलाप : तेज बुखार में शंखपुष्पी और पिसी मिश्री सम भाग मिलाकर 1-1 चम्मच दिन में 3-4 बार पानी के साथ देने से लाभ होता है। नींद भी अच्छी आती है।

उच्च रक्तचाप : उच्च रक्तचाप के रोगी को शंखपुष्पी का काढ़ा बनाकर सुबह और शाम पीना चाहिए। काढ़ा 2-3 दिन तक लगातार पिएं, फिर 1-1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ लेने लगें। रक्तचाप सामान्य हो जाने के बाद भी 1-2 सप्ताह तक लेते रहें।

बिस्तर में पेशाब : कुछ बच्चे बड़े हो जाने पर भी सोते हुए बिस्तर में पेशाब करने की आदत छोड़ नहीं पाते। ऐसे बच्चों को आधा चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह-शाम चटाकर ऊपर से ठंडा दूध या पानी पिला दें। यह प्रयोग एक से दो माह तक कराएं।

शंखपुष्पी के योग
शंखपुष्पी शरबत : शंखपुष्पी 125 ग्राम, ब्राह्मी 25 ग्राम तीन लीटर पानी में डालकर शाम को रख दें। दूसरे दिन इसे आग पर पकाएं। जब पानी ढाई लीटर बचे, तब इसे उतारकर कपड़े से छान लें। इस पानी में पांच किलो शकर और एक ग्राम नीबू का सत्व (साइट्रिक एसिड) डालकर उबालें। जब थोड़ा गाढ़ापन आ जाए तब उतारकर ठंडा करके, इसमें खाने का हरा रंग एक ग्राम या आधा ग्राम, तरल रूप में लेकर मिला लें और बोतलों में भर लें। यही शंखपुष्पी शरबत है। इसे 1-2 चम्मच, एक गिलास पानी में घोलकर रोज पीने से दिमागी ताकत, स्मरण शक्ति और स्नायविक शक्ति बढ़ती है।

शंखपुष्पी तेल : शंखपुष्पी का रस या काढ़ा 40 मि.ली., बकायन की छाल का काढ़ा 40 मि.ली., अडूसा का रस चार लीटर, अर्जुन की छाल का काढ़ा, काजी, लाख का रस और दही ये सभी चार-चार लीटर। अनार की छाल, देवदारु, हल्दी, दारुहल्दी, हरड़, बहेड़ा, आंवला, लाल चंदन, खस, सुगंधबाला, सफेद चंदन, मुलहठी, नागरमोथा, श्यामलता (अनन्तमूल), शैवाल, हरसिंगार, लाल कमल और रसौत सब 25-25 ग्राम लेकर कल्क बना लें। चार लीटर तिल के तेल में यह कल्क और अन्य सभी द्रव्य डालकर मंदी आंच पर पकाएं। जलीय अंश सूख जाए तब उतारकर छानकर तेल शीशियों में भर लें।

यह तेल बच्चों के शरीर और स्वास्थ्य के लिए बहुत गुणकारी है। विशेषकर सूखा रोग से ग्रस्त बच्चे के लिए इस तेल की मालिश बहुत लाभप्रद सिद्ध होती है। यह तेल रक्तवर्द्धक, मांस को पुष्ट करने वाला, दुबलापन मिटाने वाला और त्वचा को कांतिपूर्ण बनाने वाला है। ज्वर और दुर्बलता नष्ट करने वाला है। यह तेल बना-बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।

शंखपुष्पी वटी : शंखपुष्पी व असगन्ध 100-100 ग्राम। ब्राह्मी, मुलहठी, गिलोय, शतावरी, भृंगराज, वचा सब 50-50 ग्राम। स्मृतिसागर रस, स्वर्णमाक्षिक भस्म, ज्योतिष्मती रसायन सब 25-25 ग्राम।

भावना द्रव्य : बला व कूठ 100-100 ग्राम और आमलकी रसायन 25 ग्राम। इन भावना द्रव्यों को मिलाकर जौकुट करके दो लीटर पानी में उबालें। जब पानी एक लीटर बचे तब उतारकर कपड़े से छान लें और इस पानी को फिर उबालें। जब पानी 250 मि.ली. बचे, तब उतारकर ठंडा कर लें। सब द्रव्यों को अलग-अलग कूट-पीसकर खूब महीन चूर्ण कर मिला लें और 250 मि.ली. बचा पानी इस मिश्रण में इस तरह से मिलाएं कि घोल गाढ़ा रहे। इस घोल को खरल में डालकर खूब घुटाई करके 2-2 रत्ती की गोलियां बना लें। गोलियों को खूब अच्छी तरह सुखाकर शीशी में भर लें। यह शंखपुष्पी वटी है।

बड़ी आयु वालों को 2-2 और बच्चों को 1-1 वटी (गोली) सुबह-शाम दूध के साथ 4-5 माह तक सेवन करना चाहिए। यह वटी छात्र-छात्राओं के लिए और जो वयस्क स्त्री-पुरुष दिमागी काम करते हैं, उनके लिए विशेष रूप से उपयोगी व गुणकारी है। यह वटी इसी नाम से बनी बनाई बाजार में मिलती है।

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