मार्ती अहतिसारी को शांति नोबेल

Webdunia
- आर सी ओझा

नॉर्वे की नोबेल समिति के अनुसार अहतिसारी ने अंतरराष्ट्रीय रंगमंच पर शांति की स्थापना में और द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संघर्षों को कम करने में अहम भूमिका निभाई और 2008 शांति नोबेल के हकदार बने।

गाँधीजी ने जिस तरह से सच को ईश्वर माना, उसी तरह शांति को भी ईश्वर के समक्ष माना जा सकता है। ऐसे ही एक सपूत फिनलैंड के पूर्व राष्ट्रपति मार्ती अहतिसारी को कुछ माह पूर्व नोबेल शांति पुरस्कार हेतु चुना गया और उन्हें दिसंबर में उत्कृष्टतम शांति नोबेल से अलंकृत किया जाएगा।

नॉर्वे की नोबेल समिति की घोषणानुसार अहतिसारी ने अंतरराष्ट्रीय रंगमंच पर शांति की स्थापना में और द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संघर्षों को कम करने में अहम भूमिका निभाई है, जिसके लिए वे 2008 शांति नोबेल के हकदार बने। अहतिसारी ने संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि के रूप में और निजी हैसियत से तीन दशकों से अधिक समय से दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका, मध्य-पूर्व और दक्षिण-पूर्व-एशियाई राष्ट्रों में आजादी लाने के लिए काम किया है। नोबेल अकादमी ने अपनी घोषणा में अहतिसारी को शांति के दूत के नाते संबोधित किया है।

नोबेल समिति ने तहेदिल से इस तथ्य को रेखांकित किया है कि अहतिसारी ने नामीबिया में संवैधानिक सरकार को प्रतिष्ठित करने में अग्रणी भूमिका निभाई। दक्षिण अफ्रीका के पश्चिमी तट पर बसा यह देश बरसों से आजादी की गुहार कर रहा था। निजी तौर पर अपने सभी शांति प्रयासों में नामीबिया में अपने योगदान को अहतिसारी सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं।

उनके अथक प्रयासों से ही नामीबिया में गुरिल्ला युद्ध समाप्त हुआ और जो देश वर्षों तक मात्र दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका कहलाता था, उसका उदय नामीबिया के रूप में हुआ। नोबेल अकादमी ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि 1988 में दक्षिण-अफ्रीका, अंगोला और क्यूबा के बीच जो शांति वार्ता हुई उसके बाद ही नामीबिया पूर्ण राष्ट्र के रूप में उभरा।

अहतिसारी ने पल-पल शांति स्थापना ही अपना उद्देश्य रखा। उनकी वजह से ही संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना के तत्वावधान में नामीबिया में असेंबली का संविधान रचने के लिए चुनाव कराए गए, जिसमें साउथ-वेस्ट अफ्रीका पीपुल्स ऑर्गेनाइजेशन (स्वापो) चुनाव में विजयी हुआ। अहतिसारी के प्रयास रंग लाए और नामीबिया में 1990 में उदारवादी बहुपार्टी संविधान लागू हुआ। अहतिसारी नामीबिया में तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष दूत बनकर गए थे। संघर्ष से संविधान तक की यात्रा में उनका योगदान शांति नोबेल के योग्य माना गया।

नामीबिया के अतिरिक्त अन्य राष्ट्रों में भी अहतिसारी ने संघर्ष विराम कराने में सफलता हासिल की। उनके प्रयासों से इंडोनेशिया और आचेह प्रांत के बीच 2005 में शांति समझौता हुआ। इसके पूर्व, पूर्व तिमोर में आजादी के लिए 1999 में वे सक्रिय रहे थे।

गाँधीजी के विचारों को मानने वाले अहतिसारी पश्चिम एशिया के प्रति भी संवेदनशील हैं और इराक युद्ध के दौरान वे इस दिशा में प्रयत्नशील थे। उनकी मानवतावादी नीतियाँ मध्य-पूर्व के लिए स्थायी शांति लाने में मददगार साबित हो सकती हैं।

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