आंवला नवमी पर पूजन का महत्व

आंवला नवमी : एक नजर में

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कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले की पूजा व उसकी छांव में भोजन का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि कार्तिक मास की नवमी को आंवला के पेड़ के नीचे अमृत की वर्षा होती है। कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि में आंवले की पूजा को पुत्र प्राप्ति के लिए भी विशेष लाभदायक माना गया है। इस दिन को आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है।

कुम्हड़े व आभूषण का दान :-
आंवला नवमी के दिन श्रद्घालुओं द्वारा विशेष तौर पर ब्राह्मणों को कुम्हड़ा दान किया जाता है। मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन ब्राह्मणों को बीज युक्त कुम्हणा दान करने पर कुम्हड़े की बीज में जितने बीज होते हैं, उतने ही साल तक दानदाता को स्वर्ग में रहने की जगह मिलती है।

इस दिन ब्राह्मणों को सोने-चांदी भी दान किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन ब्राह्मण को सोना-चांदी दान करने पर दान किए गए सोने-चांदी से छः गुना सोने-चांदी प्राप्त होता है।

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नवमी के दिन जगह-जगह महिलाएं आंवले के वृक्ष के नीचे पूजा-पाठ करके भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना कर भोजन भी ग्रहण करती है। इस दिन आंवले के पेड़ से अमृत की वर्षा मानी गई है।

ऐसी मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदे गिरती है और यदि इस पेड़ के नीचे व्यक्ति भोजन करता है तो भोजन में अमृत के अंश आ जाता है। जिसके प्रभाव से मनुष्य रोगमुक्त होकर दीर्घायु बनता है।

वैसे आंवले के महत्व को वैज्ञानिक भी मान्यता देते हैं। आंवले में विटामिन सी की भरमूर मात्रा होती है। इसीलिए कार्तिक शुक्ल नवमी पर श्रद्घालु आंवले के पेड़ की पूजा करके इसी पेड़ की छांव में भोजन ग्रहण करते हैं।

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