महर्षि वेदव्यास

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गुरुपूर्णिमा पर गुरुदेव की पूजा के साथ महर्षि व्यास की पूजा भी की जाती है। महर्षि व्यास का पूरा नाम कृष्णद्वैपायन है। उन्होंने वेदों का विभाग किया, इसलिए उनको व्यास या वेदव्यास कहा जाता है। महर्षि पराशर व्यासजी के पिता हैं और सत्यवतीजी उनकी माता।

व्यासजी भगवान के अवतार हैं, वे अमर हैं। समय-समय पर पुण्यात्मा भगवद् भक्तों को उनके दर्शन हुए हैं। द्वापर युग के अंतिम भाग में व्यासजी प्रकट हुए थे। उन्होंने अपनी सर्वज्ञ दृष्टि से समझ लिया कि कलियुग में मनुष्यों की शारीरिक शक्ति और बुद्धि शक्ति बहुत घट जाएगी। इसलिए कलियुग के मनुष्यों को सभी वेदों का अध्ययन करना और उनको समझ लेना संभव नहीं रहेगा।

व्यासजी ने यह जानकर वेदों के चार विभाग कर दिए। जो लोग वेदों को पढ़, समझ नहीं सकते, उनके लिए महाभारत की रचना की। महाभारत में वेदों का सभी ज्ञान आ गया है। धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, उपासना और ज्ञान-विज्ञान की सभी बातें महाभारत में बड़े सरल ढंग से समझाई गई हैं। इसके अतिरिक्त पुराणों की अधिकांश कथाओं द्वारा हमारे देश, समाज तथा धर्म का पूरा इतिहास महाभारत में आया है। महाभारत की कथाएँ बड़ी रोचक और उपदेशप्रद हैं।

सब प्रकार की रुचि रखने वाले लोग भगवान की उपासना में लगें और इस प्रकार सभी मनुष्यों का कल्याण हो इस भाव से व्यासजी ने अठारह पुराणों की रचना की। पुराणों में भगवान के सुंदर चरित्र हैं। भगवान के भक्त, धर्मात्मा लोगों की कथाएँ पुराणों में हैं। इनके अतिरिक्त व्रतों की विधि, तीर्थों का माहात्म्य, ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, नीति आदि लाभकारी उपदेशों से पुराण पूर्ण है।

हिन्दू धर्म के सभी भागों को व्यासजी ने पुराणों में भली-भाँति समझाया है। ज्ञानियों के लिए उन्होंने वेदांत दर्शन की भी रचना की है। वेदांत दर्शन छोटे-छोटे सूत्रों में लिखा गया है। किंतु उसके सूत्र इतने गंभीर हैं कि उनका अर्र्थ समझने के लिए बड़े बड़े ग्रंथ लिखे हैं। महर्षि व्यास सभी हिन्दुओं के परम पुरुष हैं। गुरुपूर्णिमा पर गुरुदेव की पूजा के साथ महर्षि व्यास की पूजा भी की जाती है।

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