...और मुशर्रफ की सत्ता का महल जमींदोज

Webdunia
मंगलवार, 19 अगस्त 2008 (15:32 IST)
परवेज मुशर्रफ के पाकिस्तान के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के फैसले के साथ ही सोमवार को नौ बरस के उस शासन का अंत हो गया, जो अमेरिका के समर्थन से खूब फला-फूला।

महाभियोग की प्रक्रिया का अपमान सहने से बचने के लिए मुशर्रफ ने अपनी पारी समाप्त घोषित कर दी, लेकिन उनका कार्यकाल दरअसल उन्हीं के कुछ फैसलों के कारण ढलान पर आ चुका था।

इनमें अक्टूबर 2007 में अपने दोबारा निर्वाचन के बाद आपातकाल लागू करना तथा न्यायाधीशों को बर्खास्त करना प्रमुख थे। बढ़ते अंतरराष्ट्रीय एवं घरेलू दबाव के कारण मुशर्रफ को सेना प्रमुख का पद छोड़ना पड़ा और वे केवल राष्ट्रपति ही रह गए थे।

कभी पाकिस्तान में सर्वाधिक शक्तिशाली समझे जाने वाले 65 वर्षीय मुशर्रफ के शत्रुओं में पहला नाम है पूर्व प्रधानमंत्री और पीएमएल (एन) प्रमुख नवाज शरीफ का। मुशर्रफ ने शरीफ का 12 अक्टूबर 1999 को तख्ता पलट दिया था और एक वर्ष बाद ही उन्हें निर्वासित कर दिया था।

शरीफ 18 फरवरी के आम चुनावों से पहले पाकिस्तान लौटे। पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद उन्होंने बेनजीर की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के साथ हाथ मिला लिया। एक समय था, जब बेनजीर शरीफ की कट्टर प्रतिद्वंद्वी समझी जाती थीं।

शरीफ और पीपीपी का तालमेल रंग लाया तथा चुनावों में मुशर्रफ समर्थक पीएमएल (क्यू) को मुँह की खानी पड़ी। बस यहीं से रास्ता बन गया मुशर्रफ की रवानगी का।

पीपीपी शुरू में मुशर्रफ के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया से बचती रही, लेकिन सहयोगियों के तीव्र दबाव में उसने सात अगस्त को ऐलान कर दिया कि मुशर्रफ पर कदाचार संविधान के उल्लंघन और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में महाभियोग चलाया जाएगा।

पुरानी दिल्ली की नहर वाली हवेली में 11 अगस्त 1943 को जन्में मुशर्रफ 1998 में उस समय सुर्खियों में आए थे, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उन्हें सात अक्टूबर को सेना प्रमुख नियुक्त किया था।

जनरल जिया उल हक के बाद सर्वाधिक लंबे समय तक देश के सेना प्रमुख रहे मुशर्रफ इस पद तक कभी नहीं पहुँच पाते, अगर शरीफ ने उन्हें अनेक वरिष्ठ अधिकारियों की सेवाओं को दरकिनार कर इस पद पर तैनात न किया होता।

वर्ष 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध हुआ और यहीं से तत्कालीन प्रधानमंत्री शरीफ और जनरल मुशर्रफ के रिश्ते भी बिगड़ गए। कारण दोनों ने सेना की असफलता को लेकर एक-दूसरे पर दोषारोपण किए।

शरीफ ने कहा कारगिल हमले के लिए केवल मुशर्रफ जिम्मेदार थे तो सेना प्रमुख ने आरोप लगाया कि पीएमएल (एन) नेता अमेरिकी दबाव में हार मान गए। शरीफ ने मुशर्रफ को सेना प्रमुख पद से बर्खास्त कर दिया। मुशर्रफ ने उनका तख्ता पलट दिया।

सर्वोच्च अदालत ने जब जनरल के इस तख्ता पलट को जायज ठहराया तो मुशर्रफ ने सबसे पहले शरीफ को पाकिस्तान से बाहर निर्वासन में भेज दिया और उनकी स्वदेश वापसी पर दस साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया।

पाकिस्तान की एक अन्य राजनीतिक दिग्गज पीपीपी प्रमुख बेनजीर भुट्टो पहले से ही निर्वासन में थीं। मुशर्रफ ने स्वयं को देश का प्रमुख कार्याधिकारी घोषित कर दिया और 20 जून 2001 को स्वयं को औपचारिक तौर पर राष्ट्रपति नियुक्त किया।

इसके कुछ ही दिन बाद वे बहुचर्चित आगरा शिखर सम्मेलन में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी से बात करने के लिए आए, लेकिन यह वार्ता नाकाम रही।

राष्ट्रपति पद पर अपनी नियुक्ति को जायज ठहराने के लिए मुशर्रफ ने 30 अप्रैल 2002 को जनमत संग्रह कराया। उसकी व्यापक आलोचना हुई, लेकिन उन्होंने अपना कार्यकाल पाँच वर्ष के लिए बढ़ा लिया। इसी साल के आखिर में हुए आम चुनावों में शरीफ की पार्टी से अलग हुए गुट पीएमएल (क्यू) को बहुमत मिल गया।

मुशर्रफ ने एक जनवरी 2004 को निर्वाचक मंडल से विश्वास मत हासिल कर लिया। इसी निर्वाचक मंडल ने उन्हें छह अक्टूबर 2007 को सेना प्रमुख के पद पर रहते हुए दूसरी बार राष्ट्रपति निर्वाचित किया।

पाकिस्तान के पुराने सहयोगी अमेरिका से मुशर्रफ को भरपूर समर्थन मिला। मुशर्रफ ने अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिकानीत फौजों की सहायता के लिए सेना भेजी।

उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान को संरक्षण न देने का भी फैसला किया। यह वह समय था, जब मुशर्रफ स्वदेश और विदेशों में बड़ी ताकत बनकर उभरे, लेकिन वे अपने ही देश में कट्टरपंथियों के निशाने पर भी आ गए और उन पर तीन जानलेवा हमले हुए।

मुशर्रफ ने नौ मार्च 2007 को पद के दुरुपयोग के आरोप में देश के प्रधान न्यायाधीश इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी को बर्खास्त कर दिया, जिसका वकीलों और विपक्ष ने देशव्यापी विरोध किया।

उन्होंने दस जुलाई को इस्लामाबाद स्थित लाल मस्जिद में सेना भेजने का फैसला किया। इस अभियान में 100 से अधिक व्यक्ति मारे गए और देश में आत्मघाती हमले तेज हो गए।

तीन नवंबर 2007 को उन्होंने संविधान निलंबित कर आपातकाल लागू कर दिया। राजनीतिक विरोधी जेल भेजे गए। सर्वोच्च अदालत के वे न्यायाधीश बर्खास्त कर दिए गए, जिन्हें तय करना था कि सेना प्रमुख के पद पर रहते हुए मुशर्रफ का राष्ट्रपति बनना जायज होगा या नहीं।

आम चुनावों में जीत से राजनीतिक दलों के हौसले बुलंद हो गए और मुशर्रफ अलग-थलग पड़ते गए। उन्हें उनके द्वारा सेना प्रमुख बनाए गए जनरल अशफाक कियानी का समर्थन भी नहीं मिला और सोमवार को उन्होंने इस्तीफे का फैसला ले लिया।

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