डिजिटल हो गई, रेशम की डोर

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भाई की कलाई पर बाँधी ज ान े वाली रेशम की डोर इन दिनों डिजिटल हो गई है। इंटरनेट की नई दुनिया में जहाँ हमारी जिंदगी ही डिजिटल होती जा रही है, वहाँ भाई-बहन के प्‍यार का प्रतीक राखी भला क्‍यों न डिजिटल होती।

इन दिनों राखी के त्‍योहार पर इंटरनेट से राखी कार्ड्स और ई-राखी भेजने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। विदेशों में बसे भाई को बहनें बड़ी आसानी से चंद मिनटों में एक राखी कार्ड और सुंदर ई-राखी भेजकर अपना कर्त्‍तव्‍य पूरा कर देती हैं। आसन की जगह कुर्सी पर कम्‍प्‍यूटर के सामने बैठकर भाई अपनी बहन द्वारा भेजी गई ई-राखी को देखकर खुश हो जाता है। बस पाँच मिनट में मन गई राखी।

राखी पर ई-कार्ड और ई-ग्रीटिंग भेजने की शुरुआत सन् 1995 के बाद हुई। प्रारंभ में ई-राखी हिंदुस्‍तान के ज्‍यादातर भाई-बहनों की पहुँच से बाहर थी। जैसे-जैसे इंटरनेट की घुसपैठ हमारे जीवन में बढ़ती गई, वैसे-वैसे इस माध्‍यम में भी हमारे त्‍योहारों, रस्‍मों और हमारी परंपराओं का प्रतिबिंब दिखाई देने लगा ।
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इंटरनेट पर भारतीय त्‍योहारों के ग्‍लोबल हो जाने का सबसे बड़ा फायदा उन लोगों को मिला, जो अपने देश से मीलों दूर पराए देश में अपना संसार बसाकर रहते हैं। त्‍योहारों पर जब मन अपने शहर, अपने मोहल्‍ले की चहल-पहल देखने को ललचाता है तो एकमात्र सहारा इंटरनेट का ही होता है, जिसकी वजह से घर से दूर रहने का दर्द थोड़ा कम हो जाता है।

जिन बहनों को पराए देश की गलियों में राखी की सजी-धजी दुकानें देखने को नहीं मिलतीं, उनके लिए इंटरनेट पर ई-राखी का पूरा बाजार सजा है। राखी ही क्‍यों, यहाँ अक्षत्-कुमकुम से लेकर सजी-सजाई पूजा की थाली भी उपलब्‍ध है। ऐसा नहीं है कि यह सबकुछ सिर्फ ई-मेल के जरिए प्रतीकात्‍मक रूप से बहनें अपने भाइयों तक पहुँचाती हैं। इंटरनेट पर आपके लिए पूजा की थाली से लेकर नारियल और मिठाई खरीदने और उसे भाई के घर पहुँचाने की सुविधा भी उपलब्‍ध है।

इंटरनेट पर ई-राखी को देखकर विदेशी भी इस त्‍योहार में रुचि लेने लगे हैं। भाई-बहन के बीच होने वाली छोटी-छोटी तकरार, प्‍यार भरी नोक-झोंक, एक-दूसरे के प्रति समर्पण दुनिया के हर कोने में देखा जा सकता है। भाई-बहन के प्‍यार का प्रतीक रक्षाबंधन भी अब इंटरनेट की मदद से भारत की सीमाओं से बाहर निकलकर विश्‍व भर में भाई-बहनों के दिल में अपनी जगह बना रहा है।
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