उपेक्ष‍ित हैं जानकी वल्लभ शास्त्री

Webdunia
सोमवार, 12 नवंबर 2007 (11:05 IST)
आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री...। एक समय जिनके सान्न‍िध्य में पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर, लोहिया, जेपी और साहित्य जगत की बड़ी-बड़ी हस्तियाँ अपने आप को गौरवान्वित महसूस किया करती थीं, आज लोगों और सरकार की उपेक्षा के कारण वे अपने आप को ठगा-सा महसूस कर दुनिया की भीड़ से अलग एकाकी जीवन जी रहे हैं।

आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने विशेष बातचीत के दौरान कहा कि बिहार राजभाषा परिषद पटना की ओर से 'आचार्य शिवपूजन सहाय' पुरस्कार के रूप में एक लाख रुपए दिए गए थे और विधान परिषद के तत्कालीन सभापति जाबिर हुसैन ने यहाँ आकर पुरस्कार दिया था, लेकिन नीतिश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने कोई सुध नहीं ली है।

उन्होंने बताया कि बचपन में ही माँ के निधन के बाद 16 वर्ष की उम्र में वे आचार्य बने। उस जमाने में लोग गुण को महत्व देते थे और उसी के माध्यम से लोगों को जानते थे। शास्त्रीजी ने बताया कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पंडित मदनमोहन मालवीयजी ने आगे बढ़ने और अच्छी राह पर चलने में काफी सहयोग दिया।

आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने बताया कि उनके सान्न‍िध्य में 100 से अधिक लोगों ने पीएचडी की है, लेकिन आज उन्हें पूछने वाला कोई नहीं है। बिछावन पर बैठे कुत्ते, बिल्ली, गिलहरी और अन्य जानवरों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि ये आदमी से बेहतर और वफादार जीव हैं और अब यही मेरे इष्ट मित्र भी हैं।

आचार्य शास्त्री के आवास पर गिलहरी, तोता, मैना समेत काफी संख्या में पक्षी भी स्वच्छंदता पूर्वक निवास कर रहे हैं। आचार्य शास्त्री ने बताया कि आज पोषण करने वाले राजनीतिज्ञ, माफिया, अपराधियों ने बिहार की तस्वीर बदल दी है। अहिंसा की जन्मस्थली जहाँ गौतम बुद्ध, महावीर आदि ने राजधर्म का पाठ पढ़ाया था, वहाँ आज अपराधियों का बोलबाला हो गया है।

उन्होंने बिहार की स्थिति की तुलना फणीश्वरनाथ रेणु की कालजयी रचना 'मारे गए गुलफाम' पर आधारित राज कपूर की फिल्म 'तीसरी कसम' के उस दृश्य से की, जिसमें बाँस से भरी बैलगाड़ी को देखकर ताँगे के घोड़े के बिदकने के बाद जब दो लोग उसे पीटने लगते हैं तो हीरामन का किरदार निभा रहे राज कपूर कहते हैं 'जान के नहीं किए थे' और बैलगाड़ी पर बाँस नहीं लादने की कसम खाते हैं।

आचार्य शास्त्री ने कहा कि बिहार के लोगों की स्थिति आज उसी हीरामन जैसी हो गई है। लोगों ने चौथी कसम खाई है बिहार नहीं लौटने की, लेकिन बिहार के बाहर भी लोग उन्हें चैन से जीने नहीं दे रहे हैं।

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