नोएडा भूमि घोटाले में सीबीआई छापे

Webdunia
शुक्रवार, 11 जनवरी 2008 (17:18 IST)
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव के शासनकाल में नोएडा में हुए जमीन घोटाले को लेकर सीबीआई ने शुक्रवार को नोएडा विकास प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ, आईएएस अधिकारी देवदत्त के राजधानी लखनऊ स्थित आवास समेत नोएडा, गाजियाबाद, इलाहाबाद और मेरठ सहित 19 स्थानों पर छापे मारे हैं।

राजधानी लखनऊ स्थित उत्तरप्रदेश डेवलपमेंट सिस्टम कार्पोरेशन (यूपी डेस्को) मुख्यालय सहित कई अधिकारियों के घरों पर छापे मारे गए हैं।

उल्लेखनीय है कि पूर्व मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुए अधिकारियों, उनकी पत्नियों व रिश्तेदारों को नोएडा में करोड़ों के प्लाट आवंटित किए थे। सूची में पत्रकार, जज, वकील आदि भी शामिल हैं।

वर्ष 2004 में नोएडा प्राधिकरण के भूमि आवंटन ड्रॉ में जमकर धाँधली हुई। जनता के साथ धोखाधड़ी करते हुए प्राधिकरण अधिकारियों ने नियम कायदे कानूनों को ताक पर रख 85 प्लाटों को अपनों को बाँट दिया। गड़बड़ी वाले सभी आवंटन 250 से 450 वर्गमीटर के प्लाट थे। यह प्लाट नोएडा के महत्वपूर्ण सेक्टर में थे।

नोएडा अथॉरिटी ने वर्ष 2004 में 1250 आवासीय प्लाटों की स्कीम निकाली थी, जिसमें एक लाख 66 हजार आवेदकों ने आवेदन किए थे, लेकिन 2 जुलाई, 2005 में इस स्कीम के ड्रॉ में तत्कालीन प्राधिकरण के अधिकारियों ने यूपी डेस्को के साथ मिलकर एक ऐसे ड्रॉ को अंजाम दिया था, जिसमें डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों के विश्वास को तोड़कर बड़ा घोटाला अंजाम दिया गया।

इस घोटाले में सबसे ज्यादा प्लाट आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को दिए गए। इनमें बीबी सिंह तत्कालीन उपाध्यक्ष लखनऊ विकास प्राधिकरण, पीयूष श्रीवास्तव, जयनारायण श्रीवास्तव, राजीव कुमार, अंजलि जैन, शिशिर प्रियदर्शी, सरिता यादव, सुषमा माथुर, ईशा भल्ला, तनु पाटनी, पियूष मोर्डिया, ऊषा दीप्ति विलास, दिव्यप्रीत ललनी, सुषमा माथुर, अपर्णासिंह (इंस्पेक्टर सेंट्रल एक्साइज) प्रमुख हैं।

नोएडा विकास प्राधिकरण का जमीन घोटाला सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका के माध्यम से सामने आया। जमीन आवंटन पाने वालों में न्यायाधीश, पूर्व न्यायाधीश भी शामिल थे।

जनहित याचिका तथा घोटाले की जाँच सीबीआई से कराने की मुख्यमंत्री मायावती की सिफारिश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 22 नवंबर को सीबीआई को इस मामले में जाँच का आदेश दिया था।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर, 2005 को अपने अंतरिम आदेश में 1250 आवासीय प्लाटों के आवंटन की जाँच सीबीआई से नहीं कराने की तत्कालीन राज्य सरकार की दलील को इसलिए मान लिया था क्योंकि तब सरकार ने यह लिखित दिया था वह अपने स्तर से मामले की जाँच करा रही है तथा सीबीआई से इसकी जाँच की आवश्यकता नहीं।

इसके बाद हाईकोर्ट में कई जनहित याचिकाएँ दायर की गईं जिसमें सीबीआई जाँच की अपील की गई थी। याचिका के बाद हाईकोर्ट ने जाँच का आदेश दिया जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी।

हाईकोर्ट ने प्लाट आवंटन में गड़बड़ी को देखते हुए फिर से लॉटरी निकलने का आदेश दिया था। राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री मायावती ने पिछले साल एक जून को घोटाले की जाँच सीबीआई से कराने की सिफारिश की थी।

मुख्यमंत्री के सीबीआई जाँच की सिफारिश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 22 नवम्बर को सीबीआई को इस मामले में जाँच के आदेश दिए थे। जिसके क्रम में सीबीआई ने आज लखनऊ सहित राज्य के 19 स्थानों पर छापे मारकर महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद किए हैं।

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