कहीं बढ़ न जाए ये दूरियाँ

गायत्री शर्मा
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बच्चों और माँ-बाप का रिश्ता बहुत गहरा होता है। यह रिश्ता एक ऐसा रिश्ता होता है, जिसकी डोर आत्मीयता व प्यार से बंधी होती है लेकिन अक्सर यह देखने में आता है कि बच्चों के बड़े होने के साथ-साथ इन रिश्तों में दूरियाँ भी बढती जाती है।

अब बड़ों और किशोरों के बीच संवाद होता है तो वो भी बस खामोशी और इशारों में। बड़ों की यही खामोशी उन दोनों के बीच की इस दूरी को बढ़ाती है। ऐसे में एक ही घर में रहते हुए परिवार के किशोर और बड़ों की दिशाएँ व सोच अलग-अलग व विरोधाभासी होती है।

बड़े चाहे तो इस दूरी को पाट सकते हैं और किशोरों के दिल पर राज कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें अपने बच्चों को अपना प्यार, विश्वास और वक्त देना होगा।

हम है तुम्हारे दोस्त :-
बड़े जब तक अपने तीखे तेवर अपनाते रहेंगे, तब तक वे कभी बच्चों को अपना दोस्त नहीं बना सकते हैं। बड़ों को चाहिए कि वे बच्चों के साथ बच्चे बन जाएँ व उनके सुख-दु:ख में शरीक हो। ऐसा करने पर बच्चे बगैर किसी झिझक या शर्म के अपने बड़ों से अपने दिल की बात करेंगे व उनका सम्मान भी करेंगे।

  बच्चों को डाँट-डपट से समझाने के बजाय प्यार से समझाइएँ। किशोर उम्र की उस दहलीज पर खड़े होते हैं, जिसमें जोश-जुनून व ऊर्जा होती है। हो सकता है आपकी डाँट से नाराज होकर नासमझी में वो कुछ गलत कदम उठा लें।      
प्यार करना भी है जरूरी :-
बच्चे भले ही कितने भी बड़े हो जाए परंतु उन्हें अपने माँ-बाप के प्यार की अपेक्षा जीवनभर रहती है। वे भी चाहते है कि उनकी हर खुशी में माँ-बाप उनके साथ हो तथा उनकी कामयाबी पर वे उनकी हौसलाअफजाई भी करें। माँ-बाप के द्वारा बच्चों को प्यार से गले लगाना या चूमना मात्र ही उन्हें अपार खुशी दे सकता है। यदि आप अपने बच्चों से इतना प्यार करते हैं तो फिर प्यार के इजहार में ‍झिझक क्यों?

हर मुद्दे पर खुलकर बात :-
यदि आपके बच्चों के मन में किसी विषय पर कोई सवाल है या कोई ऐसी बात, जिसे वो आपसे जानने की इच्छा रखते हैं तो प्रश्न उन्हें पूछने दीजिए तथा उनकी समस्या का यथोचित उत्तर भी दीजिए। आपके द्वारा अपने बच्चों से खुलकर बात करना बच्चों के मन में आपके प्रति सम्मान व विश्वास पैदा करेगा। इसी विश्वास को कायम रखने के लिए अगली बार भी बच्चे अपने मन की बात सबसे पहले आपसे ही शेयर करेंगे।

डाँट-डपट नहीं, अब प्यार :-
बच्चों को डाँट-डपट से समझाने के बजाय प्यार से समझाइएँ। किशोर उम्र की उस दहलीज पर खड़े होते हैं, जिसमें जोश-जुनून व ऊर्जा होती है। हो सकता है आपकी डाँट से नाराज होकर नासमझी में वो कुछ गलत कदम उठा लें। इससे तो बेहतर है कि आप ऐसा मौका ही न आने दें।

ज्यादा दखलअंदाजी अच्छी नहीं :-
किशोरों की उम्र मौज-मस्ती की उम्र होती है। इस उम्र में उन्हें अचानक बंदिशों व बेडि़यों में जकड़ना आपके व उनके दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। आप बच्चों पर, उनकी हरकतों पर अप्रत्यक्ष रूप से नजर रखें परंतु उसके साथ उन्हें आजादी भी दें। आजादी निर्णय लेने की, आजादी जिंदगी जीने की। बच्चों के काम में बड़ों की जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी बच्चों को उग्र व बड़ों का विरोधी बना देती है।

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