नर्मदा किनारे का बरमान मेला

बरमान मेले का महत्व

Webdunia
- ब्रजेश शर्मा
SUNDAY MAGAZINE

जबलपुर से करीब 125 किलोमीटर दूर करेली-सागर मार्ग पर यह मेला आयोजित होता है। इसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली है। यहाँ महाकौशल, विंध्य व बुंदेलखंड के अलावा महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश आदि अन्य राज्यों से आए लोग मौजूदगी दर्ज कराते हैं। नर्मदा किनारे बरमान के मेले तले विभिन्न पृष्ठभूमियों और रीति-रीवाज से जुड़े लोगों का संगम करीब एक महीने तक चलता है।

नदियों के किनारे पैदा हुई मेला संस्कृति ने कई परंपराओं व मान्यताओं को हमेशा ही पोषित किया है। नरसिंहपुर जिले का बरमान मेला भी मूल्यों व परंपरा संग सदियों का सफर पूरा कर चुका है। इस मेले की शुरुआत कब हुई इसका कोई ऐतिहासिक दस्तावेज तो उपलब्ध नहीं है लेकिन जनश्रुति के आधार पर यह मेला आठ सदियों के पड़ाव पार कर चुका है।

यहाँ आज भी 12वीं सदी की वराह प्रतिमा और रानी दुर्गावती द्वारा ताजमहल की आकृति का बनाया मंदिर मौजूद है। इसके अलावा, यहाँ स्थित 17वीं शताब्दी का राम-जानकी मंदिर, 18वीं शताब्दी का हाथी दरवाजा, छोटा खजुराहो के रूप में ख्यात सोमेश्वर मंदिर, गरुड़ स्तंभ, पांडव कुंड, ब्रह्म कुंड, सतधारा, दीपेश्वर मंदिर, शारदा मंदिर व लक्ष्मीनारायण मंदिर इतिहास का जीवंत दस्तावेज हैं।

यहाँ के कुदरती नजारों के आकर्षण की वजह से ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया बचपन में लाव-लश्कर के साथ यहाँ महीनों रहती थीं। यहाँ स्थित रानी कोठी सिंधिया घराने ने ही बनवाई है। वहीं गरुड़ स्तंभ को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्थल की मान्यता दी है। हरे रंग का यह पत्थर राजा अशोक के समय का है। इस पर विष्णु के 24 अवतारों का चित्रांकन है।

बरमान मेले का महत्व नर्मदा नदी की वजह से भी है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि ब्रह्मा ने नर्मदा तट के सौंदर्य से अभिभूत होकर यहाँ तप किया, इस वजह से ब्रह्मांड घाट कहलाया। कालांतर में ब्रह्मांड घाट का अपभ्रंश बरमान हो गया।

ND
यहाँ के पांडव कुंड के बारे में कहा जाता है कि वनवास के समय जब यहाँ पांडव ठहरे तो उन्होंने एक कुंड में नर्मदा का जल लाने का प्रयास किया, वह पांडव कुंड बन गया। पास में ही पांडव गुफाएँ हैं। वहीं सूर्य कुंड व ब्रह्म कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग, चर्म रोग व मिर्गी दूर होती है।

बरमान के प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं। कई तो जीर्णोद्धार की आस में खंडहर में बदलते जा रहे हैं। नदी की श्रृंगार सामग्री रेत व अन्य खनिज संपदा का इतना अधिक दोहन कर दिया गया कि नर्मदा के रेत घाट और सीढ़ी घाट कीचड़ में सन गए हैं। इस स्थल के विकास के लिए कुछ समय से बरमान विकास प्राधिकरण बनाने की माँग भी होती आ रही है। यहाँ के प्रसिद्ध भुट्टे और गन्ने का स्वाद तो लजीज माना ही जाता है, अब इसकी खेती को भी बढ़ावा देने की जरूरत है।

नर्मदा के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए लोक परंपरा का गीत 'बंबुलिया' सिर्फ नरसिंहपुर जिले में ही गाया जाता है। यह एक ऐसा सामूहिक गान है जो यहाँ के अलावा नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से लेकर भरूच की खाड़ी तक कहीं भी सुनने को नहीं मिलता। मेले में स्वास्थ्य, कृषि, वन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, महिला एवं बाल विकास, उद्योग, रेशम, मत्स्यपालन समेत कई विभागों की प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र होती है। हालाँकि इस बार बजट के अभाव में स्वास्थ्य विभाग को छोड़कर अन्य किसी ने प्रदर्शनी नहीं लगाई।

इस बार प्रमुख तौर पर कृषि यंत्र, लोहे-पीतल व ताँबे से बने बर्तन आकर्षण का केंद्र रहे। वहीं सर्कस, झूले, मौत का कुआँ, मीना बाजार आदि ने भी लोगों को अपनी ओर खींचा। यह मेला करीब ढाई सौ हेक्टेयर क्षेत्र में लगा है। इसमें कपड़े, ज्वेलरी, फर्नीचर, बर्तन, किराना, मिठाइयाँ, मनिहारी सामान, इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिक उत्पाद, चमड़े से बनी वस्तुओं का संकलन हैं।

Show comments

Buddha purnima 2024: भगवान बुद्ध के 5 चमत्कार जानकर आप चौंक जाएंगे

Buddha purnima 2024: बुद्ध पूर्णिमा शुभकामना संदेश

Navpancham Yog: सूर्य और केतु ने बनाया बेहतरीन राजयोग, इन राशियों की किस्मत के सितारे बुलंदी पर रहेंगे

Chankya niti : करोड़पति बना देगा इन 4 चीजों का त्याग, जीवन भर सफलता चूमेगी कदम

Lakshmi prapti ke upay: माता लक्ष्मी को करना है प्रसन्न तो घर को इस तरह सजाकर रखें

पूजा किस प्रकार से की जाती है, जानिए पूजन की विधि

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर ने श्रीलंका स्थित ऐतिहासिक सीता अम्मन मंदिर का उद्घाटन किया

प्रसिद्ध बौद्ध धर्म तीर्थ सारनाथ का फेमस मंदिर

Mata lakshmi : माता लक्ष्मी ने क्यों लिया था एक बेर के पेड़ का स्वरूप, जानकर चौंक जाएंगे

Buddh purnima 2024 : गौतम बुद्ध के जन्म की 5 रोचक बातें