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विवेकानंद को मिला था गुरु का आशीर्वाद

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नरेन्द्र अर्थात स्वामी विवेकानंद की मां आजीवन अपमान सहती रहीं। नरेन्द्र के पिता पर उनके चाचा कालीप्रसाद दत्त के ढेरों एहसान थे। कमाते पिता विश्वनाथ दत्त थे, पर संयुक्त कुटुंब की व्यवस्था कालीप्रसाद देखते थे।

कई बार नरेन्द्र की मां भूखे पेट रह जाती, पर पति से नहीं कहती। जब उन्हें पता चला तो बड़े दुखी हुए पर कुछ कर नहीं पाए। सारी आय कालीप्रसाद हड़प लेते। 13 फरवरी, 1884 को विश्वनाथ दत्त का निधन हो गया। वे हाई कोर्ट के अटार्नी थे और चाहते थे कि उनका बेटा नरेन्द्र भी जो इतना मेधावी है, अटार्नी बने।


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नरेन्द्र बीए के बाद बीएल करना चाहते थे, पर पिता की मृत्यु के बाद उन्हें पता चला कि वे भारी कर्ज छोड़ गए हैं, जो उनके चाचा कालीप्रसाद की ही देन है।

अपने भाई विश्वनाथ दत्त की मृत्यु के बाद काली बाबू ने उनके परिवार को घर से निकाल दिया। नरेन्द्र नौकरी की तलाश में दर-दर ठोकरें खाने लगे। हालांकि वे तब तक स्वामी रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आ चुके थे।

नरेन्द्र को ब्रह्म समाज वाले भी बहुत चाहते थे। ब्रह्म समाज के एक स्कूल में अध्यापक का एक पद रिक्त था, पर वहां के प्रमुख शिवनाथ शास्त्री ने उन्हें रामकृष्ण परमहंस का भक्त मान नौकरी देने से मना कर दिया।

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रामकृष्ण मूर्तिपूजक थे, जो ब्रह्म समाज को कतई स्वीकार्य नहीं था। नरेन्द्र को यह नौकरी न मिलना भी शायद एक दैवी संयोग बन गया, वरना नरेन्द्र कभी भी विवेकानंद बन कर विश्वव्यापी ख्याति अर्जित न कर पाते।

रामकृष्ण परमहंस अक्सर कहा करते थे, 'मेरा नरेन्द्र सामान्य मानव नहीं है। वह ब्रह्मलोक का ऋषि है।' गुरु ने ही शिष्य को प्रतिकूलताओं में शक्ति दी। फिर वे कहां से कहां पहुंच गए, यह कथा सभी को विज्ञात है।

संकलन : लाजपत राय सभरवा ल

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