भगवान कृष्ण की नगरी-2

नदिया के पार गोकुल की गलियां

Webdunia
- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
WD
आज से लगभग 5 हजार 125 वर्ष पूर्व उत्तरप्रदेश के मथुरा में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। गोकुल मथुरा से 15 किलोमीटर दूर है। यमुना के इस पार मथुरा और उस पार गोकुल है। मथुरा के बाद गोकुल की यात्रा करना चाहिए। दुनिया के सबसे नटखट बालक ने वहां 11 साल 1 माह और 22 दिन गुजारे थे।

महावन और गोकुल एक ही है। फिलहाल 8 हजार की आबादी वाला यह गांव उस काल में कैसे रहा होगा, इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। कहा जाता है कि उस काल में इसका नाम गोकुल नहीं था। गो, गोप, गोपी आदि का समूह वास करने के कारण महावन को ही गोकुल कहा जाने लगा।

वर्तमान की गोकुल को औरंगजेब के समय श्रीवल्लभाचार्य के पुत्र श्रीविट्ठलनाथ ने बसाया था। गोकुल से आगे 2 किमी दूर महावन है। लोग इसे पुरानी गोकुल कहते हैं। यहां चौरासी खम्भों का मंदिर, नंदेश्वर महादेव, मथुरा नाथ, द्वारिका नाथ आदि मंदिर हैं।

WD
मथुरा में कृष्ण के जन्म के बाद कंस के सभी सैनिकों को नींद आ गई थी और वासुदेव की बेड़ियां किसी चमत्कार से खुल गई थी। तब वासुदेवजी भगवान कृष्ण को गोकुल में नंदराय के यहां आधी रात को छोड़ आए थे। नंद के घर लाला का जन्म हुआ है, ऐसी खबर धीरे-धीरे गांव में फैल गई। यह सुनकर सभी गोकुलवासी खुशियां मनाने लगे। कृष्ण और बलराम का पालन-पोषण यहीं हुआ।

बलराम और कृष्ण दोनों अपनी लीलाओं से सभी का मन मोह लेते थे। घुटनों के बल चलते हुए दोनों भाई को देखना गोकुल वासियों को सुख देता था। गोपियां नटखट बाल गोपाल को छाछ और माखन का लालच देकर नचाती थीं। कृष्ण ने गोकुल में रहते हुए पूतना, शकटासुर, तृणावर्त आदि असुरों का वध किया।

गोकुल तो गोपाल की बाल लीलाओं, नटखट अदाओं का स्थान है। गोकुल में प्रवेश करते ही हमें वह झाड़ दिखाई देता हैं, जहां बाल गोपाल बैठकर बंसी बजाते थे और पास ही के कुंड में मां यशोदा और गोकुल गांव की अन्य महिलाएं कपड़े धोती थी और नहाती भी थी। बाल गोपाल बांसुरी की धुन से सभी को मंत्रमुग्ध कर देते थे।

बंसीवट के पास से ही एक रास्ता सीधे नंद के भवन को जाता है। नंद के भवन तक जाते समय बीच में गौशाला और रासचौक पड़ता है। रासचौक जहां गांव के लोग लोक उत्सव या त्योहर पर मिलकर रास रचाते थे अर्थात नाचते, गाते और बजाते थे। पत्थरों से बने एक बड़े से द्वार में घुसकर हम रासचौक जाते हैं वहीं से अंदर रासचौक की एक गली के मुहाने से हमें नंद के भवन की दीवार दिखाई देती हैं। जहां दीवार दिखाई देती है वहीं से गली मुड़ जाती है जो हमें सीधे नंद के भवन के दरवाजे पर लाकर छोड़ती है।

भवन के अंदर संगमरमर के फर्श पर संकोचवश ही व्यक्ति पैर रख पाता है क्योंकि हर पत्थर पर उन लोगों के नाम खुदें हैं जिन्होंने नंद के भवन की देख-रेख और बाल गोपाल को प्रतिदिन लगने वाले माखन-मिश्री और लड्डू के भोग के लिए दान दिया है। कुछ और दरवाजों को पार करने के बाद आता है वह स्थान, जहां माता यशोदा भगवान कृष्ण को झूले में झूला झूलाती थी। यहां जहां भगवान झूले में सोते रहते थे।

भवन के भीतर दूसरी ओर के दरवाजे के पास ही तलघर में उतरने के बाद है वह स्थान, जहां भगवान कृष्ण ने पूतना का वध किया था। वहीं से पुन: ऊपर चढ़ने के बाद आगे एक गली है जो हमें गोकुल के बाजार की अन्य गलियों में लाकर छोड़ देती है। वहीं से एक गली में सीधे चलने के बाद हमें एक तरफ दिखाई देता है, रासचौक का द्वार और दूसरी तरफ वह पेड़... जहां बाल गोपाल बैठकर बंसी बजाया करते थे।

यहां के घाट और उसके पास अन्य मनोरम स्थल है जैसे- गोविंद घाट, गोकुलनाथजी का बाग, बाजनटीला, सिंहपौड़ी, यशोदा घाट, रमणरेती आदि। (क्रमश:)

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Guru Nanak Jayanti 2024: कब है गुरु नानक जयंती? जानें कैसे मनाएं प्रकाश पर्व

Dev diwali 2024: कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली रहती है या कि देव उठनी एकादशी पर?

शमी के वृक्ष की पूजा करने के हैं 7 चमत्कारी फायदे, जानकर चौंक जाएंगे

Kartik Purnima 2024: कार्तिक मास पूर्णिमा का पुराणों में क्या है महत्व, स्नान से मिलते हैं 5 फायदे

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर यदि कर लिए ये 10 काम तो पूरा वर्ष रहेगा शुभ

सभी देखें

धर्म संसार

कार्तिक पूर्णिमा देव दिवाली की पूजा और स्नान के शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, मंत्र और आरती सहित

15 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

15 नवंबर 2024, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

Geeta: महाभारत काल में श्री कृष्ण ने क्या सिर्फ अर्जुन को ही गीता का ज्ञान दिया था?

Guru Nanak Jayanti 2024: कब है गुरु नानक जयंती? जानें कैसे मनाएं प्रकाश पर्व