कुछ-कुछ भूला, कुछ-कुछ पाया

Webdunia
जितेंद्र श्रीवास्तव

फिर आज पढ़ गया मैं
ये चिट्‍ठियाँ
वर्षों पुरानी

अब भी ये कोमल
कि जैसे उँगलियाँ तुम्हारी

अब भी ये कि जैसे ताख पर
हो कोई दीया अनवरत अँधेरा चीरता हुआ

अब भी सपने इतने निराले
इन तहरीरों में
जैसे कल ही तो देखा हो इनको

अब जाकर इनमें
स्वप्न दिनों में
कुछ-कुछ भूला कुछ-कुछ पाया

देखो तो अब कितना ताजा दम हूँ
देखो तो चमत्कार अपने स्पर्श का
देखो तो यह जीवन आँच
भरी थी जो शब्दों में तुमने कभी
घुल रही है रुधिर में मेरे
धीरे-धीरे
कि हरकत-सी हो रही है अब
थमती हुई पुतलियों में।
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

पीसफुल लाइफ जीना चाहते हैं तो दिमाग को शांत रखने से करें शुरुआत, रोज अपनाएं ये 6 सबसे इजी आदतें

हवाई जहाज के इंजन में क्यों डाला जाता है जिंदा मुर्गा? जानिए क्या होता है चिकन गन टेस्ट

स्टडी : नाइट शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं को अस्थमा का खतरा ज्यादा, जानिए 5 कारण

हार्ट हेल्थ से जुड़े ये 5 आम मिथक अभी जान लें, वरना पछताएंगे

बारिश के मौसम में मच्छरों से होने वाली बीमारियों से कैसे बचें? जानिए 5 जरूरी टिप्स

सभी देखें

नवीनतम

दिल की बीमारी से बचाव के लिए जरूरी हैं ये 6 एक्सरसाइज, जानिए कैसे रखें अपना दिल तंदुरुस्त

गोलाकार ही क्यों होती हैं Airplane की खिड़कियां? दिलचस्प है इसका साइंस

इन 7 लोगों को नहीं खाना चाहिए अचार, जानिए कारण

हिन्दी कविता : योग, जीवन का संगीत

योग को लोक से जोड़ने का श्रेय गुरु गोरखनाथ को