तुम जहाँ मुझे मिली थीं

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- पंकज चतुर्वेद ी

तुम जहाँ मुझे मिली थीं
वहाँ नदी का किनारा नहीं था
पेड़ों की छाँह भी नहीं
आसमान में चन्द्रमा नहीं था
तारे नहीं

जाड़े की वह धूप भी नहीं
जिसमें तपते हुए तुम्हारे गौर रंग को
देखकर कह सकता :
हाँ, यह वही श्यामा है
मेघदूत से आती हुई
पानी की बूँदें, बादल
उनमें रह-रह कर चमकने वाली बिजली
कुछ भी तो नहीं था
जो हमारे मिलने को
खुशगवार बना सकता

वह कोई एक बैठकखाना था
जिसमें रोजमर्रा के काम होते थे
कुछ लोग बैठे रहते थे
उनके बीच अचानक मुझे देखकर
तुम परेशान सी हो गईं
फिर भी तुमने पूछा :
तुम ठीक तो हो?

तुम्हारा यह जानते हुए पूछना
कि मैं ठीक नहीं हूँ
मेरा यह जानते हुए जवाब देना
कि उसका तुम कुछ नहीं कर सकतीं

सिर्फ एक तकलीफ थी जिसके बाद
मुझे वहाँ से चले आना था
तुम्हारी आहत दृष्टि को
अपने सीने में संभाले हुए

वही मेरे प्यार की स्मृति थी
और सब तरफ एक दुनिया थी
जो चाहती थी
हम और बात ना करें
हम और साथ ना रहें
क्योंकि इससे हम
ठीक हो सकते थे।
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