तेरे ग़म में इस कदर डूबे

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- विलास पंडित 'मुसाफ़िर'

हम तेरे ग़म में इस कदर डूबे
जैसे ग़ज़लों में सुखनवर डूबे

दिल की गहर ा इयों को नाप लिया
मेरे सीने में समंदर डूबे

ख़ुदकुशी भी ख़ुशी में कर डाली
खुद को खुद ही से बचाकर डूबे

इश्क में तेरे मैं तो डूबा था
साथ लेकिन ये बाम-ओ-दर डूबे

एक तूफाँ था थम गया आखिर
ज़द में उसकी थे,वो तो घर डूबे

वस्ल की शब् का मिल गया तोहफा
साँस-दर-साँस बराबर डूबे

ज़िन्दगी हमने मुकम्मल करली
तेरे पहलू में घड़ी भर डूबे

तुमने मुझको कहा था जब अपना
जाने कितनों के मुकद्दर डूबे

वापसी उसकी किस तरह मुमकिन
ठहरे पानी में जो पत्थर डूबे

आज के दौर से यही है गिला
किसलिए सारे दीदावर डूबे

इक 'मुसाफ़िर' ये सोचता ही रहा
क्यूँ भला साथ खैरो-शर डूबे।
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