पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है

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- मीर त.की 'मीर'

पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग तो सारा जाने है

आगे उस मुतकब्बिर (घमंडी) के हम खुदा-खुदा किया करते हैं
कब मौजूद, खुदा को वह मगरूर (अभिमानी) खुदारा जाने है

आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के जिया (क्षति) को इश्क़ में उसके अपना वारा जाने है

चारागरी (उपचार) बीमारी-ए-दिल की, रस्मे-शहरे-हुस्न नहीं
वर्ना दिलबरे-नादाँ (प्रियतम), भी इस दर्द का चारा (इलाज) जाने है

आशिक़ तो मुर्दा है हमेशा, उठता है देखे से उसके
यार के आ जाने को यकायक, उम्र दोबारा जाने है

क्या-क्या आफ़तें सर पर उसके लाता है माशूक़ अपना
जिस बेदिल, बेताबो-तवा को इश्क़ का मारा जाने है

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