रातों में आवाज दिया न करो

-लक्ष्मी नारायण खरे

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यूँ वक्त-बेवक्त तुम
दस्तक दिल पर दिया न करो
दीये उम्मीदों के जलाकर
रातों में आवाज दिया न करो।
यूँ तो बातें बहुत
तुम्हें आती हैं
पर बातें दिल की तुमसे
कही नहीं जाती हैं
नजरों को भी बोलने दो कभी
सदा होंठों से बात किया न करो।
रातों में आवाज दिया न करो
कई बार हमने
ये आजमाया है
नजरों को तुम्हारे
इंतजार में पाया है
खुशी मिलन में होती है
मुझे भी पर
दर्द बिदाई में
इतना दिया न करो
रातों में आवाज दिया न करो
तब मुझे देखकर
तुम्हारा छिप जाना।
अब छिप कर मुझे
देखने लग जाना
ये इशारा ही बहुत है
समझने को फिर
चाहत से इंकार किया न करो
रातों में आवाज दिया न करो।
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