श्राद्ध पर्व की पौराणिक कथा

ऐसे करें पितर को प्रसन्न

Webdunia
FILE
जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किन्तु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी।

पितृपक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा, किन्तु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएँगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा।

अतः वह बोली- 'आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, किन्तु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूँगी। दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी।' फिर उसने जोगे को अपने पीहर न्योता देने के लिए भेज दिया।

FILE
दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में जुट गई। उसने रसोई तैयार की। अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई। आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था। इस अवसर पर न जोगे की पत्नी ने उसे रोका, न वह रुकी। शीघ्र ही दोपहर हो गई। पितर भूमि पर उतरे। जोगे-भोगे के पितर पहले जोगे के यहाँ गए तो क्या देखते हैं कि उसके ससुराल वाले वहाँ भोजन पर जुटे हुए हैं। निराश होकर वे भोगे के यहाँ गए। वहाँ क्या था? मात्र पितरों के नाम पर 'अगियारी' दे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुँचे।

थोड़ी देर में सारे पितर इकट्ठे हो गए और अपने-अपने यहाँ के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे- अगर भोगे समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता, मगर भोगे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी। यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई। अचानक वे नाच-नाचकर गाने लगे- 'भोगे के घर धन हो जाए। भोगे के घर धन हो जाए।'

साँझ होने को हुई। भोगे के बच्चों को कुछ भी खाने को नहीं मिला था। उन्होंने माँ से कहा- भूख लगी है। तब उन्हें टालने की गर्ज से भोगे की पत्नी ने कहा- 'जाओ! आँगन में हौदी औंधी रखी है, उसे जाकर खोल लो और जो कुछ मिले, बाँटकर खा लेना।'

बच्चे वहाँ पहुँचे, तो क्या देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े-दौड़े माँ के पास पहुँचे और उसे सारी बातें बताईं। आँगन में आकर भोगे की पत्नी ने यह सब कुछ देखा तो वह भी हैरान रह गई।

इस प्रकार भोगे भी धनी हो गया, मगर धन पाकर वह घमंडी नहीं हुआ। दूसरे साल का पितृपक्ष आया। श्राद्ध के दिन भोगे की स्त्री ने छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाए। ब्राह्मणों को बुलाकर श्राद्ध किया। भोजन कराया, दक्षिणा दी। जेठ-जेठानी को सोने-चाँदी के बर्तनों में भोजन कराया। इससे पितर बड़े प्रसन्न तथा तृप्त हुए।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितरों को करें तर्पण, करें स्नान और दान मिलेगी पापों से मुक्ति

जानिए क्या है एकलिंगजी मंदिर का इतिहास, महाराणा प्रताप के आराध्य देवता हैं श्री एकलिंगजी महाराज

Saturn dhaiya 2025 वर्ष 2025 में किस राशि पर रहेगी शनि की ढय्या और कौन होगा इससे मुक्त

Yearly Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों का संपूर्ण भविष्‍यफल, जानें एक क्लिक पर

Family Life rashifal 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों की गृहस्थी का हाल, जानिए उपाय के साथ

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: दिसंबर माह का पहला दिन क्या लाया है आपके लिए, पढ़ें अपना राशिफल

01 दिसंबर 2024 : आपका जन्मदिन

धनु संक्रांति कब है क्या होगा इसका फल?

01 दिसंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

01 दिसंबर 2024 को सुबह एक ही समय नजर आएंगे चांद और सूरज