यूरोप का 'सुपर पावर' जर्मनी

Webdunia
- सीमान्त सुवी र

FILE
इस बात में कोई शक नहीं ‍कि जर्मनी का प्रभाव जितना ज्यादा यूरोपीय महाद्वीप पर रहा है, उतना किसी अन्य देश का नहीं, फिर भले ही आप इतिहास में 500 या इससे ज्यादा साल पीछे चले जाएँ। जर्मनी का इतिहास नाटकीय घटनाक्रमों से भरा पड़ा है। युद्ध, बर्बादी, विभाजन, औद्योगिक क्रांति और फिर यूरोप का 'सुपर पावर' बनने के बीच उत्तर यूरोप के इस गजब के देश ने न जाने क्या-क्या देखा है।

इस देश ने तीन बड़ी राजनैतिक उठापटक देखी, पहली 1507 में, दूसरी 1871 में और तीसरी द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1945 में। जर्मनी को अक्सर हिटलर के कारण ही याद रखा जाता है या फिर उसे नस्लवाद का समर्थक और यहूदियों का दुश्मन माना जाता रहा। यह सही है कि हिटलर ने अपने काल में यहूदियों का नामोनिशान तक जर्मनी से मिटा दिया था और वह द्वितीय विश्वयुद्ध का र‍चयिता था लेकिन इसी युद्ध ने जर्मनी का विभाजन करवा दिया। वह पश्चिम और पूर्वी जर्मनी में बँट गया था।

1990 में बर्लिन की दीवार गिरते ही दोनों देश फिर से एक हो गए और यहीं से एक ऐसे जर्मनी का उदय हुआ जो यूरोप की सबसे बड़ी ताकत बन गया। जर्मनी न सिर्फ खेलों में बल्कि कला, दर्शन, साहित्य, व्यापार और इंजीनियरिंग में भी सबसे अग्रणी है।

फ्रेंकफर्ट आज दुनिया की आँख का तारा बना हुआ है तो सिर्फ अपनी इंजीनियरिंग और सुविधाओं के चलते जितनी सुविधाएँ यहाँ हैं, उतनी कहीं अन्यत्र नहीं हैं। जर्मनी यूरोप का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और 2010 में इसकी आबादी 8 करोड़ के लगभग है, जिसे सरकार बढ़ाने के लिए प्रत्येक विवाहित जोड़े को हर तरह से मदद करती है।

जर्मनी की ताकत को उसके नागरिकों का ‍चरित्र है, जो विपत्तियों में भी मुस्कुराना जानते हैं और लड़ने-मारने में भी किसी से पीछे नहीं रहते। जर्मनी ही ऐसा देश है, जिसने इंजीनियरिंग की दिशा बदली आज वह कार निर्माण से लेकर कलपुर्जों के निर्माण में अमेरिका की भी मदद कर रहा है और उसकी बीएमडब्ल्यू कार संपन्न राजनयिकों के काफिले की शोभा में हर दम तैयार रहती है।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

लीड्स की हार का एकमात्र सकारात्मक पहलू: बल्लेबाजी में बदलाव पटरी पर

ICC के नए टेस्ट नियम: स्टॉप क्लॉक, जानबूझकर रन पर सख्ती और नो बॉल पर नई निगरानी

बर्फ से ढंके रहने वाले इस देश में 3 महीने तक फुटबॉल स्टेडियमों को मिलेगी 24 घंटे सूरज की रोशनी

The 83 Whatsapp Group: पहली विश्वकप जीत के रोचक किस्से अब तक साझा करते हैं पूर्व क्रिकेटर्स

क्या सुनील गावस्कर के कारण दिलीप दोषी को नहीं मिल पाया उचित सम्मान?