चल साथ कि हसरत दिले महरूम से निकले

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चल साथ कि हसरत दिले महरूम से निकले
आशिक का जनाज़ा है, ज़रा धूम से निकले
फिदवी अज़ीमाबादी

हसरत - इच्छा, कामना
दिले महरूम - वंचित का दिल या वंचित दिल
अर्थ - शायर कह रहा है कि मुझे ज़िंदगी में तो तेरे साथ चलना कभी नसीब नहीं हुआ। अब मैं मर गया हूँ तो तू मेरे जनाज़े के साथ चल ताकि मेरी इच्छा पूरी हो सके और तू साथ चलेगा, तो मेरे जनाज़े की रौनक बढ़ जाएगी। आशिक की मय्यत धूमधाम से ही निकलनी चाहिए।

फ़िदवी अज़ीमाबादी कोई बहुत जाने - पहचाने शायर नहीं हैं। मगर कभी-कभी कोई एक शेर ऐसा हो जाता है, जो शायर को ज़िंदा रखता है। ये शेर तो लोकप्रियता की एक और सीमा लाँघ कर बातचीत का हिस्सा और मुहावरा बन चुका है। वैसे ऊपर जो दो लाइने आपने अभी पढ़ी उसे ग़ज़ल का मतला कहा जाता है। मतला का मतलब ज़मीन होता है। मतले में दोनों लाइनों की तुक मिलती है। यानी मतला इस बात की घोषणा है कि ग़ज़ल की ज़मीन क्या होगी।
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