ग़ज़लें : ख्वाजा मीर दर्द

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ख्वाजा मीर दर्द

है ग़लत गर गुमान में कुछ है
तुझ सिवा भी जहान में कुछ है

दिल भी तेरे ही ढंग सीखा है
आन में कुछ है, आन में कुछ है

बेखबर तेग़-ए-यार कहती है
बाक़ी इस नीम जान में कुछ है

इन दिनों कुछ अजब है मेरा हाल
देखता कुछ हूँ ध्यान में कुछ है

और भी चाहिए सो कहिए अगर
दिल ए नामेहरबान में कुछ है

दर्द तू जो करे है जी का ज़ियाँ
फ़ायदा इस ज़ियान में कुछ है
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