ग़ज़ल-- बेखुद देहलवी

Webdunia
शनिवार, 12 जुलाई 2008 (11:24 IST)
वो सुनकर हूर की तारीफ़, परदे से निकल आए
कहा फिर मुस्कुराकर, हुस्न-ए-ज़ेबा इसको कहते हैं

अजल का नाम दुश्मन दूसरे मानी में लेता है
तुम्हारे चाहने वाले तमन्ना इस को कहते हैं

मेरे दफ़न पे क्यों रोते हो आशिक़ मर नहीं सकता
ये मर जाना नहीं, सब्र आना इसको कहते हैं

नमक भर कर मेरे ज़ख्मों में तुम क्या मुस्कुराते हो
मेरे ज़ख्मों को देखो मुस्कुराना इसको कहते हैं

ज़माने की अदावत का सबब थी दोस्ती जिनकी
अब उनको दुश्मनी है हम से,दुनिया इस को कहते हैं
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

वर्ल्ड म्यूजिक डे 2025 : संगीत का साथ मेंटल हेल्थ के लिए इन 7 तरीकों से है फायदेमंद

21 जून योग दिवस 2025: सूर्य नमस्कार करने की 12 स्टेप और 12 फायदे

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस: 30 की उम्र तक हर महिला को शुरू कर देना चाहिए ये 5 योग अभ्यास

21 जून: अंतरराष्ट्रीय योग एवं संगीत दिवस, जानें इसकी 3 खास बातें

क्यों पुंगनूर गाय पालना पसंद कर रहे हैं लोग? जानिए वैदिक काल की इस अद्भुत गाय की विशेषताएं

सभी देखें

नवीनतम

पीसफुल लाइफ जीना चाहते हैं तो दिमाग को शांत रखने से करें शुरुआत, रोज अपनाएं ये 6 सबसे इजी आदतें

योग दिवस 21 जून को ही क्यों मनाया जाता है, जानें कारण और इसका महत्व

हवाई जहाज के इंजन में क्यों डाला जाता है जिंदा मुर्गा? जानिए क्या होता है चिकन गन टेस्ट

अपनी दिनचर्या में शामिल करें ये सुपरफूड्स, हमेशा बने रहेंगे हेल्दी

21 जून को साल के सबसे लंबे दिन पर करें ये 8 विशेष उपाय