रेहबर इन्दौरी

Webdunia
कभी यक़ीन का यूँ रास्ता नहीं बदला
बदल गए हैं ज़माने ख़ुदा नहीं बदला

इक उम्र कट गई बेमेह्र-ओ-बेवफ़ाओं में
हमारा फिर भी मिज़ाज-ए-वफ़ा नहीं बदला

वो जिसमें छोड़ के निकला है बेच कर तो नहीं
मकान बदला है उसने पता नहीं बदला

जतन की और भी रफ़्तार तेज़ कर देंगे
अगर नसीब का लिक्खा हुआ नहीं बदला

हम उस रसूल की उम्मत में हैं मुक़द्दर से
के दुश्मनों से भी जिसने लिया नहीं बदला

बदल गए हैं ज़माने के साथ सब रेहबर
अगर नहीं तो फ़क़त आईना नहीं बदला

2. मुबारक हो के मेहलों से निकल के
ग़ज़ल आई लब-ओ-लेहजा बदल के

वो क्या था जश्न-ए-मयख़ाना के जिस में
कहीं आँखें कहीं पैमाने छलके

खड़े हैं हादिसे हर हर क़दम पर
संभल के ही नहीं बेहद संभल के

ये किसने धूल सूरज पे उड़ा दी
के दिन में छा गए कैसे धुंधलके

भरोसा उस पे करता हूँ मैं रेहबर
जो वादे भूलता है आज-क ल क े
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

गर्मियों में इन हर्बल प्रोडक्ट्स से मिलेगी सनबर्न से तुरंत राहत

जल की शीतलता से प्रभावित हैं बिटिया के ये नाम, एक से बढ़ कर एक हैं अर्थ

भारत-पाक युद्ध हुआ तो इस्लामिक देश किसका साथ देंगे

बच्चों की कोमल त्वचा पर भूलकर भी न लगाएं ये प्रोडक्ट्स, हो सकता है इन्फेक्शन

पाकिस्तान से युद्ध क्यों है जरूरी, जानिए 5 चौंकाने वाले कारण

सभी देखें

नवीनतम

अपनी पत्नी को इस अंदाज में दीजिए जन्मदिन की बधाई, आपके प्यार से खिल उठेगा लाइफ पार्टनर का चेहरा

जानिए कितनी है वैभव सूर्यवंशी की नेट वर्थ , किस परिवार से आता है क्रिकेट का यह युवा सितारा?

एक ग्रह पर जीवन होने के संकेत, जानिए पृथ्वी से कितना दूर है यह Planet

प्रभु परशुराम पर दोहे

अक्षय तृतीया पर अपनों को भेजें समृद्धि और खुशियों से भरे ये प्यारे संदेश