जिले में 39 हजार बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इनमें से 3 हजार तो ऐसे हैं, जिन्हें तत्काल चिकित्सा की जरूरत है। जनप्रतिनिधियों ने कुपोषित बच्चों को गोद तो लिया, लेकिन उनके पोषण के लिए राशि स्वीकृत करने के बाद पलटकर यह नहीं देखा कि मैदान में काम कितना हुआ है। जिले में कागजों पर कुपोषण के विरुद्घ मुहिम चल रही है। विकास यात्रा भी निकाली जा रही है, मगर जिम्मेदार लोग कुपोषित बच्चों की समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
महिला एवं बाल विकास विभाग कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए समय-समय पर मुहिम चला रहा है, लेकिन सरकारी प्रयास बेअसर साबित हो रहे हैं। जिले में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या 5 हजार तथा मध्यम वर्ग के कुपोषित बच्चों की संख्या 31 हजार से अधिक है। बाल चिकित्सालय के सूत्रों के अनुसार हर हफ्ते 15 से 20 प्रतिशत कुपोषित बच्चे विभिन्ना बीमारियों से ग्रस्त होकर आ रहे हैं। ऐसे बच्चों का बाकायदा इलाज किया जा रहा है।
शहर के अर्जुन नगर, बजरंग नगर, ईश्वर नगर, शिवशंकर नगर, रामरहीम नगर आदि वे मोहल्ले हैं, जहाँ सर्वाधिक कुपोषित बच्चे हैं। आदिवासी क्षेत्र बाजना, सैलाना, सरवन, रावटी, शिवगढ़, लालगुआड़ी आदि स्थानों पर कुपोषण के विरुद्ध कागजों पर लड़ाई चल रही है। इन क्षेत्रों में कुपोषण मिटाने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा जनप्रतिनिधियों को कुपोषित बच्चे गोद लेने के लिए प्रेरित किया गया, मगर ये प्रयास भी सफल नहीं हुए।
सरकारी नियमों के अनुसार कुपोषित बच्चों को पौष्टिक आहार के अतिरिक्त खोपरा गोला देना अनिवार्य है। ग्रामीण अंचलों में पौष्टिक आहार तथा खोपरा गोला का वितरण कार्य नहीं हो रहा है। चिकित्सक स्मिता शर्मा ने बताया कि कुपोषित बच्चों को हरी सब्जियाँ, दूध, दाल, चावल और मौसमी फल के अतिरिक्त सूर्य की पर्याप्त रोशनी मिलना चाहिए। बच्चों को फास्ट फूड, पैकिंग वाले भोजन, चॉकलेट्स, शीतलपेय से बचाना चाहिए।