बदनामी सिर्फ स्त्री की ही क्यों...?

दिनेशचन्द्र उपाध्याय

Webdunia
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प्राचीनकाल से आज तक भले ही बहुत-सी बातों में स्त्री का दोष न हो, फिर भी उसे ही प्रताड़ित, कलंकित व बदनाम किया जाता है। पुरुष प्रधान समाज में स्त्री का दर्द समझने की कोशिश न के बराबर होती है। वस्तुतः देखा जाए तो जिन बातों के लिए अक्सर स्त्री को अपमानित किया जाता है उनके लिए पुरुष भी जिम्मेदार होते हैं तो बदनामी की भागीदार सिर्फ स्त्री ही क्यों होती है?

स्वतंत्रता के 63 वर्षों के बाद भी शासन के तमाम प्रयासों, महिला संगठनों की स्थापना, 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने, महिला शिक्षा पर जोर देने के बावजूद ग्रामीण स्त्रियों की स्थिति में अभी तक मनोनुकूल परिवर्तन नहीं हो सके हैं। गाँवों और कस्बों में आज भी ऐसे कई प्रसंग देखने-सुनने को मिलते हैं जिनके लिए स्त्री को ही बदनाम किया जाता है, जैसे-

' डायन': आए दिन अखबारों में खबर छपती है कि अमुक गांव में स्त्री को निर्वस्त्र कर घुमाया गया या पीटकर मार डाला गया, क्योंकि लोगों को शक था कि वह डायन है और उसी के कारण बच्चों की मृत्यु हुई है। भले ही बच्चों की मृत्यु कुपोषण या बीमारी से हो लेकिन पुरुष प्रधान समाज में रूढ़ि या अंधविश्वास के कारण स्त्री को डायन मानकर बदनामी के साथ मौत के घाट तक उतार दिया जाता है। ऐसा करते समय वे भूल जाते हैं कि ममता की मूर्ति मां क्या कभी बच्चों को खा सकती है!

कन्या को जन्म देना : कई राज्यों के गांवों में आज भी बहू बेटी को जन्म देती है तो परिवारवाले उसके साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार करते हैं, जैसे उसने बहुत बड़ा पाप कर दिया हो। ऐसा करते समय वे भूल जाते हैं कि लड़के के जन्म के लिए पुरुष के 'वाय क्रोमोसोम' की जरूरत होती है। इसके अभाव का दोष स्त्री को नहीं दिया जा सकता। तो फिर बेटी होने पर महिला को क्यों बदनाम किया जाता है?

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बाँझपनः यदि कोई महिला मा ं नहीं बन पाती है तो उसे कलंकिनी, बांझ (यहां तक कि अन्य महिलाएं सुबह-सुबह उसका मुंह तक नहीं देखतीं) आदि कहकर अपमानित व प्रताड़ित करते हैं। वे भूल जाते हैं कि बच्चे के जन्म के लिए स्त्री-पुरुष दोनों का योगदान होता है। हो सकता है पुरुष में कमी हो, परंतु मां न बनने पर बदनाम स्त्री को ही किया जाता है। शारीरिक कमी यदि स्त्री में भी हो तो इसके लिए उसे दोषी ठहराने या अपमानित करने का क्या औचित्य है?

छेड़छाड़ः गांवों में यदि किसी महिला के साथ कोई छेड़छाड़ की जाती है तो पुलिस में रिपोर्ट करने के बजाए उसे चुप रहने के लिए कहा जाता है, क्योंकि माना जाता है कि ऐसा करने से लड़की या स्त्री की बदनामी होगी। इसी कारण अपराधी जुर्म करने के बावजूद बच जाता है। वहीं बेकसूर होते हुए भी पीड़िता पर घर व समाज वाले उंगलियां उठाते हैं।

कई मर्तबा तो आत्मग्लानि में महिला आत्महत्या तक कर लेती है। इसी तरह स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाली छात्रा को कोई मनचला परेशान करता है तो उसे सबक सिखाने के बजाए 'लड़की की बदनामी होगी', इस डर से उसका स्कूल जाना रुकवा देते हैं। गलती पुरुष करे और भुगते महिला, ऐसा क्यों?

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कौमार्य परीक्षा : विज्ञान एवं शिक्षा के युग में आज भी कई गांवों व समाज में कई प्रकार से नारी के कौमार्य की परीक्षा की जाती है। (एक समाज में तो शादी के बाद बहू के हाथों से बिना झारी के गर्म तेल से पूरियां निकलवाई जाती हैं)। शादी के बाद प्रथम मिलन पर यदि ब्लीडिंग न हो तो बहू को बदचलन करार देकर छोड़ दिया जाता है, भले ही उसने कुछ गलत न किया हो। ऐसा करने वाले नहीं जानते कि घुड़सवारी, उछलकूद, साइकल चलाने या अन्य कारण से भी कौमार्य झिल्ली (हायमन झिल्ली) फट सकती है।

' तुम्हारे कारण': कहते हैं कि हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है। हकीकत में सफल होने पर पुरुष कभी इसका श्रेय नारी को नहीं देता, परंतु असफल होने पर अपशब्द, अपमान और प्रताड़ना के साथ पुरुष बस यही कहता है, 'ये सब तुम्हारे कारण ही हुआ।'

इस तरह शिक्षित, सभ्य समाज में किसी बात के लिए पुरुष जिम्मेदार हो, महिला का उससे कोई वास्ता न हो परंतु बदनाम, अपमान, तिरस्कार स्त्री का ही होता है। क्या पुरुष द्वारा अपने व्यवहार का आकलन किए बगैर स्त्री को इस तरह अपमानित और तिरस्कृत करना उचित है?

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