योग का अभ्यास

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आजकल योग के अभ्यास का चलन बढ़ गया है। रह कोई योग करने लगा है। करना भी चाहिए, क्योंकि योग से हर तरह का असाध्य रोग भी ठीक हो सकता है, लेकिन सवाल उठता है कि योग का अभ्यास किसे करना चाहिए और किसे नहीं और किस योग को कब तक करना चाहिए?

योग के प्रशिक्षक कहते हैं कि योग का अभ्यास हर किसी के लिए नहीं है। कुछ तरह के सामूहिक योग प्रशिक्षण से समस्याएं पैदा हो सकती हैं, यहां तक कि कपालभाती और अनुलोम-विलोम जैसे लोकप्रिय प्राणायम से भी परेशानी बढ़ सकती है। यह प्राणायाम सीधे हार्ट और फेंफड़ों पर अटैक करता है। कपालभाती और भस्त्रिका करने के नियम और अनुशासन होते हैं हर कोई इसे नहीं कर सकता।

अनुभवी योग प्रशिक्षकों का मानना है कि हर समय हर किसी को योग से ठीक नहीं किया जा सकता। लोगों की अलग-अलग जीवन शैली होती है और प्रत्येक व्यक्ति में योग की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं होती है। इसलिए किसी खास समस्या या रोग के लिए कोई खास आसन या प्राणायाम तय नहीं किया जा सकता। योग किसी गोली या दवाई की तरह नहीं है।

घातक है पुस्तक से पढ़कर योग करना : बहुत से लोग पुस्तक से पढ़कर योग करते हैं जो उनके लिए घातक सि‍द्ध हो सकता है। योग प्रशिक्षकों के अनुभव के अनुसार पुस्तक से योग सीखकर और नौली क्रिया का अभ्यास आरम्भ करने से एक व्यक्ति के गुदा द्वार की तंत्रिकाओं ने काम करना बंद कर दिया था। इस कारण शौच होते समय उन्हें पता ही नहीं चलता था। जब कभी दर्द होता था तभी इसकी जानकारी हो पाती थी।

टीवी चैनल देखकर योग करना : आजकल टीवी चैनल पर योग सिखाया जाने लगा है और लोग सीडी लाकर भी योग करने लगे हैं। योग के अनुभवी शिक्षकों का मानना है कि टेलीविजन पर किसी योग प्रशिक्षक को देखकर योग करना सही नहीं है। अनुभवी शिक्षकों की देखरेख में विधिवत योग का प्रशिक्षण लेकर ही योग करना चाहिए।

विशेषज्ञों के अनुसार जिस भस्त्रिका प्राणायाम को लोग करते हैं, उससे अस्थमा की शिकायत भी हो सकती है। भस्त्रिका प्राणायाम में फेफड़े पर प्रेशर पड़ता है। इससे फेफड़ा अत्यधिक सक्रिय हो जाता है और इससे अस्थमा भी हो सकता है।

दूसरा प्राणायाम कपालभाती भी तो महिलाओं के लिए ज्यादा खतरनाक है। यदि कपालभाती का अभ्यास बिना बंध लगाए (गुदा द्वार और योनि को बंद किए बगैर) किया जाता है, तो आंतरिक अंगों पर दबाव बनता है और वे अंग नीचे की ओर सरकते हैं। इससे महिलाओं में गर्भाशय अपनी जगह से हट सकता है।

योग प्रशिक्षकों अनुसार योग का अभ्यास व्यक्ति के शरीर की प्रकृति और समस्या को देख परखकर कराया जात है। इस दौरान रोगी के भीतर होने वाली प्रतिक्रिया पर कड़ी नजर रखी जाती है और उसके आधार पर योग में बदलाव किया जाता है।

सामान्य प्राणायाम अनुलोम-विलोम भी सभी के लिए नहीं है। जब हम एक नासिका से वायु लेते हैं और दूसरे से उसे छोड़ते हैं तो इससे मस्तिष्क का श्वसन केंद्र विचलित हो जाता है जो कि श्वसन पर नियंत्रण रखता है। जरूरी है कि इसकी विधिवत रूप से शिक्षा लेकर ही इसे किया जाए।

अंतत: जो लोग पुस्तक पढ़कर या टीवी चैनल देखकर योग कर रहे हैं उन्हें सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि योग एक बेहतर चिकित्सा प्रणाली है इसे बेहतर शिक्षक-प्रशिक्षक की देखरेख में ही किया जाए तो बेहतर है वर्ना आपके लिए यह घातक सिद्ध हो सकता है। (एजेंसी) Yoga News

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